प्राचीन ज्ञान और आधुनिक विज्ञान का संगम : शिव मंदिरों का पर्यावरणीय रहस्य
आईआईटी रुड़की के अध्ययन में हुआ चौंकाने वाला खुलासा
रुड़की, 23 सितम्बर।
आईआईटी रुड़की के शोधकर्ताओं ने एक अध्ययन में बताया है कि भारत के आठ प्रमुख शिव मंदिर केवल आस्था और पूजा के केंद्र ही नहीं, बल्कि प्राकृतिक संसाधनों के हॉटस्पॉट से भी जुड़े हुए हैं। यह शोध अमृता विश्व विद्यापीठम (भारत) और उप्साला विश्वविद्यालय (स्वीडन) के सहयोग से किया गया है और प्रतिष्ठित जर्नल ह्यूमैनिटीज़ एंड सोशल साइंसेज कम्युनिकेशंस में प्रकाशित हुआ है।
शोध में पाया गया कि उत्तराखंड के केदारनाथ से लेकर तमिलनाडु के रामेश्वरम तक स्थित ये मंदिर 79° पूर्वी देशांतर रेखा पर एक उत्तर-दक्षिण पट्टी में बने हैं, जिसे शिव शक्ति अक्ष रेखा (SSAR) नाम दिया गया है। यह इलाका पानी, कृषि उत्पादन और नवीकरणीय ऊर्जा जैसी क्षमताओं से भरपूर है।
उदाहरण के तौर पर, एसएसएआर क्षेत्र भारत के कुल हिस्से का केवल 18.5% है, लेकिन इसमें 44 मिलियन टन सालाना चावल उत्पादन की क्षमता है। साथ ही यहाँ लगभग 597 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा की संभावना है, जो भारत की मौजूदा स्थापित क्षमता से भी अधिक है। उत्तरी क्षेत्र जलविद्युत के लिए उपयुक्त पाए गए, जबकि दक्षिणी क्षेत्र सौर और पवन ऊर्जा के लिहाज से महत्वपूर्ण हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि प्राचीन मंदिर निर्माण केवल धार्मिक मान्यताओं पर आधारित नहीं था, बल्कि पर्यावरणीय समझ और संसाधन नियोजन पर भी टिका था। कई मंदिर पंचतत्व—पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश—से जुड़े हैं, जो प्रकृति और आध्यात्मिकता के गहरे संबंध को दर्शाते हैं।
आईआईटी रुड़की के प्रो. के.एस. काशीविश्वनाथन ने कहा, “यह अध्ययन दिखाता है कि प्राचीन भारतीय सभ्यताओं को प्रकृति और स्थिरता की गहरी समझ थी, जिसने मंदिरों के स्थान चुनने में मार्गदर्शन किया।”
अध्ययन इस बात की ओर भी इशारा करता है कि सदियों के पर्यावरणीय बदलावों के बावजूद इन इलाकों में जल, भूमि और ऊर्जा संसाधनों की निरंतरता बनी हुई है। शोधकर्ताओं का मानना है कि यह खोज भारत के सतत विकास लक्ष्यों में पारंपरिक ज्ञान को शामिल करने का नया रास्ता खोलती है।




