
प्रकृति के साथ सामंजस्य के बिना विकास अधूरा: डॉ. संजय
देहरादून
विकास जरूरी है, लेकिन प्रकृति के साथ सामंजस्य के बिना अधूरा है, पद्मश्री से सम्मानित ऑर्थोपेडिक सर्जन डॉ. बीकेएस संजय ने विकास और संरक्षण के बीच संतुलन पर द पायनियर द्वारा आयोजित संवाद में कहा कि प्रकृति मनुष्य के बिना पनप सकती है, लेकिन प्रकृति के बिना मनुष्य जीवित नहीं रह सकता। उन्होंने कहा कि विकास को प्रकृति के साथ जोड़ना चाहिए, न कि उसके खिलाफ। समाज के सामने आने वाली विभिन्न समस्याओं का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि सतत विकास ही इसका एकमात्र समाधान है। डॉ. संजय ने जनसंख्या में अनियंत्रित वृद्धि को रोकने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि इससे संसाधनों का ह्रास हो रहा है और प्रदूषण बढ़ रहा है। उन्होंने कहा कि तनाव लगभग 70 प्रतिशत स्वास्थ्य समस्याओं के लिए जिम्मेदार है। उन्होंने कहा कि इस समस्या से निपटने के लिए शहरी नियोजन में हरित पट्टी जैसे पहलुओं की आवश्यकता है। उन्होंने देहरादून और मसूरी के बीच के क्षेत्र का उदाहरण देते हुए कहा कि अब यह क्षेत्र इमारतों और लोगों से भरा हुआ है, जबकि कृषि भूमि और वन क्षेत्र कम हो गए हैं। उन्होंने उपस्थित लोगों से न्यूनतम मानदंड अपनाने का आग्रह किया।
उन्होंने जोर देते हुए कहा कि हमें भोग विलास के बजाय जो चाहिए उसे लेना चाहिए। उन्होंने कहा, “पर्यावरण को बचाने के लिए सामूहिक प्रयास की जरूरत है। प्लास्टिक पर हमारी निर्भरता भी विनाशकारी साबित हो रही है और हमें इसे रोकना होगा। सौर ऊर्जा एक बेहतर विकल्प है जिसका अधिक से अधिक उपयोग किया जाना चाहिए। विकास और संरक्षण के बीच संतुलन हासिल करने के मुद्दे को हल करने के लिए स्थानीय और प्राकृतिक उत्पादों के उपयोग जैसे उपायों के साथ-साथ स्थिरता और जागरूकता महत्वपूर्ण है।”
