दुधवा की लाइफ लाइन सुहेली नदी का वजूद खत्म होने के कगार पर जिम्मेदारहै मौन
विश्व कांत त्रिपाठी
पलिया कलां लखीमपुर खीरी।
जैस-जैसे मौसम बदलना शुरू हो रहा है गर्मी और तेज चिलचिलाती धूप से मनुष्य तो मनुष्य जीव ज॔तु भी बेहाल होने लगे हैं इस मौसम में सबसे ज्यादा परेशान करने वाली प्यास सभी को बेहाल करने वाली है। मुनष्यो को तो इस मौसम से खास परेशानी नहीं होने वाली है क्योकि उनके पास तो अपनी प्यास बुझाने के कई साधन मौजद है जहां वो ठंडे और स्वच्छ पानी से अपनी प्यास बुझाकर तरोताजा हो जाया करेगें।
परंतु उन वन्यजीव जो कि केवल प्राक्रतिक की बनाई हुई नदी और तालाब में भरे पानी से अपनी प्यास बुझाते हैं और सबसे बड़ी और सोचनीय बात की उनके लिये मौजूद नदी या फिर तालाब वो भी देखभाल के अभाव के कारण अब सूखते जा रहें हैं। जिसके कारण वन्यजीवों को अपनी प्यास बुझाने के लिये दर दर भटकना पड़ रहा है। जिससे वन्यजीव प्रमियों को इस बात की चिंता सताने लगी है।
दे कि इसी का एक जीता जागता उदाहरण दुधवा टाइगर रिजर्व की लाइफ लाइन कही जाने वाली सुहेली नदी जिम्मेदारों के गैर जिम्मेदाराना रवैए के चलते अब अपना वजूद पूरी तरह से खो चुकी है। जिसके चलते बीते वर्ष की तरह इस वर्ष भी वन्य जीवों को प्यास बुझाने के लिये दर दर भटकना पड़ेगा।
दरअसल दुधवा की सुहेली नदी की सिल्ट सफाई न होने से सुहेली पुल से पर्वतिया घाट तक कई किलोमीटर में नदी ने रेत का टीला बना दिया है और नदी अपना रुख मोड़ कर नकउवा नाले को चली गई है। जिसके कारण वन्यजीवों को पूरी तरह से पानी की पूर्ति नहीं हो पा रही है। सर्दी और बरिश के मौसम में तो इस बात से कोई खाश प्रभाव नहीं पड़ता दिखाई देता है लेकिन गर्मी के मौसम में सुहेली नदी को वजूद खत्म होना काफी चिंता का विषय माना जा रहा है। गर्मी के मौसम में सुहेली नदी का नकउवा नदी की ओर रुख कर लेने से कई गांवों के खेतीहर इलाके भी बंजर होने की कगार पर पहुंच गये हैं क्योंकि जिस तरह से यहां भयानक सिल्ट फेंक रही है। तो कहीं न कहीं खेतीहर जमीनों में इसका जमावड़ा भी लग रहा है। तो आज नहीं कल यहां जमीनों के बंजर होने की आशंका लगातार बढ़ती दिखाई दे रही है।बता
उल्लेखनीय है कि दुधवा टाइगर रिजर्व में सैकड़ों सालों से बह रही सुहेली नदी को दुधवा की लाइफ लाइन कहा जाता है क्यों कि नदी पूरी तरह से दुधवा को छूती हुई गुजरती है और इसका पानी दुधवा के जंगल में स्वच्छंद विचरण करने वाले करीब 50 प्रतिशत वन्यजीव यहां पानी पीते थे। लेकिन अब हालात पूरी तरह से बदल चुकें हैं ।क्योंकि पलिया दुधवा मार्ग पर बने पुल से करीब पांच किलोमीटर पहले नदी ने मुख्य धारा में सिल्टिंग शुरू कर उसे पाट दिया और एक मोड़ लेकर नकउवा नाले में जा पहुंची। नाले का इतना बड़ा स्वरूप नहीं है कि वह अपने ऊपर से एक नदी को गुजार सके।