उत्तराखंड में पर्यावरण संरक्षण को लेकर के एक बहुत बड़ा आंदोलन 1970 के दशक में श्रीमती गौरा देवी के नेतृत्व में चिपको आंदोलन के रूप में हुआ था जिसमें रैणी गांव की महिलाओं ने गौरा देवी के नेतृत्व में इस आंदोलन को धार देते हुए पर्यावरण संरक्षण को लेकर के एक बहुत बड़ी नींव रखी थी उसी मुहिम को आज पूरे चमोली क्षेत्र को एक हरियाली के तौर पर देखा जा सकता है।
ठीक उसी तरह मध्य प्रदेश के बैतूल में रक्षा बंधन पर अनोखा नजारा देखने को मिलता है. यहां पर पेड़ों में युवक एवं युवतियां राखी बांधकर उनकी रक्षा करने का संकल्प लेते हैं ।
आदिवासी गांव सिमौरी एक ऐसा गांव है जहां पर्यावरण संरक्षण को लेकर हर साल गांव में पेड़ों को राखियां बांधकर इनकी सुरक्षा का संकल्प लिया जाता हैं। पहली बार आदिवासी क्षेत्रों के बच्चों ने पांच दिन में 30 फीट की राखी बनाकर पेड़ों को बांधी. सिमोरी गांव पेड़ों को राखी बांधने का कार्यक्रम 1998 से चला आ रहा है।
आदिवासी क्षेत्र में शिक्षिका का कार्य कर रही ममता गोहर कहती हैं कि राखी में हस्तकला का प्रयोग कर इसे आकर्षक बनाया गया है. उन्होंने बताया राखी को यूं तो भाई- बहन के अटूट प्रेम के बंधन के रूप में जाना जाता है पर पेड़ पौधों की सुरक्षा का भी हमारा दायित्व है. इसलिए बच्चों ने पेड़-पौधों को अपना भाई मानकर राखी बांधी है.
गांव की शांति धुर्वे, शिवा बेले, प्रीति वरकड़े, तृतीय सलोनी वरकड़े को राखी बनाने के लिए शिक्षकों ने प्रशिक्षण दिया. बच्चों ने बताया पर्यावरण हम सबके लिए जरूरी है. हमें भी आसपास के क्षेत्रों को हरा-भरा बनाना होगा. इसलिए हमने पेड़-पौधों को अपना भाई मानकर राखी बांधी है.शिक्षकों का कहना है कि आज विश्व में पर्यावरण प्रदूषण एक बड़ी समस्या है इसका कारण है पेड़ो की अंधाधुंध कटाई हो रही है. इसे रोकने के लिए हम लोगों ने एक नवाचार किया और पेड़ों को राखी बांधकर उनकी रक्षा का संकल्प लिया इस नवाचार के कारण अब इस क्षेत्र में छोटे-छोटे पौधे बड़े पेड़ का रूप ले चुके हैं उन्होंने कहा कि यह मुहिम सभी लोग जागरूक होकर के बृहद रूप से कर रहे हैं उनके इस मुहिम में शामिल होने से पर्यावरण संरक्षण को बहुत फायदा हो रहा है।