उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव हुए करीब 10 दिन हो चुके हैं लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत अभी भी राज्य की बुनियादी व्यवस्थाओं पर लगातार नजर बनाए हुए हैं कहीं उन्होंने संस्कृति एवं विरासत की बात कही तो कहीं उन्होंने आम जनमानस के लिए भी काम करने का मन बनाया इन सबके बीच अन्य राज्यों में चुनाव प्रचार करने के बाद भी हरीश रावत सोशल मीडिया में लगातार राज्य की व्यवस्थाओं के प्रति चिंतित दिखाई दे रहे हैं तथा उनकी सोच लगातार राज्य में जमीन से जुड़े हुए लोगों का स्तर कैसे सुधारा जाए इस पर लगा हुआ है तथा गाहे-बगाहे वह अपनी कलम से सोशल मीडिया में यूं ही छाए रहते हैं हरीश रावत कहते हैं हमारे राज्य में कुछ ऐसे सामाजिक समूह हैं जिन्हें सरकार की किसी भी व्यवस्था का कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है और जबकि सरकार के कुछ नियमों ने और कुछ समाज में आए बदलाव ने इनके परंपरागत काम धंधों को जो इनकी आजीविका के साधन थे, छीन लिया है। इनमें एक ऐसा वर्ग गंधर्व भी है जो पहले शादी विवाह में, रामलीलाओं के आयोजन में कई तरीके से अपनी कला को माध्यम बनाकर अपना जीविकोपार्जन करते थे। दूसरा ऐसा वर्ग सपेरा भी है जिनको स्नेक चार्मर कहा जाता है, ये बहुत बड़ी संख्या में हैं, कई इलाकों के अंदर इनकी वसासतें भी बसी हुई हैं क्योंकि अब सांप को नचाना पकड़कर के रखना आदि प्रतिबंधित है तो इनसे इनका परंपरागत धंधा छीन गया है, कोई वैकल्पिक इनको सिखाया नहीं गया है, घुमंतू_जातियां होने के कारण ये शिक्षा से भी वंचित हैं। इसी प्रकार का एक वर्ग नटों और ठठेरों का भी है, इनकी भी परंपरागत व्यवसायों के अब कद्रदान नहीं रह गया है, ऐसे वर्गों को जिनमें बंजाराज का भी एक बड़ा हिस्सा सम्मिलित है। किसी न किसी प्रकार से आजीविका के साथ जोड़ना और शिक्षा के क्षेत्र में लाकर विशेष प्रोत्साहन की योजना बनाना आवश्यक है और कुछ वर्ग इनमें से यदि आरक्षण की परिधि में आ सकते हैं तो उस परिधि में इनको लाया जाना भी आवश्यक है। मैं समझता हूं उत्तराखंड में जो नई सरकार बने उसको एक सर्वेक्षण ऐसे वर्गों का करना चाहिए और उस अध्ययन के आधार पर इन वर्गों को राज्य के विकास की मुख्य धारा का हिस्सेदार बनाया जाना चाहिए।