शिक्षक दिवस पर विशेष –
छह माह की गर्भवती पत्नी को शिक्षक बनाने के लिए पति 1200 किलोमीटर लेकर पेपर दिलाने पहुंचा स्कूटी से ।
धनंजय और सोनी की पिछले साल दो दिसंबर को शादी हुई थी। लॉकडाउन के दौरान धनंजय गुजरात से झारखंड लौट आए। पिछले तीन महीने से बेरोजगार हैं।
26 साल के धनंजय कुमार छह महीने की गर्भवती पत्नी को परीक्षा दिलाने के लिए झारखंड के गोड्डा से ग्वालियर आए हैं। दोनों ने 1200 किमी का यह सफर तीन दिन में स्कूटी से पूरा किया। धनंजय की पत्नी सोनी हेम्ब्राम 24 साल की हैं। वे शिक्षक बनना चाहती हैं। सोनी ग्वालियर में डीलेड (डिप्लोमा इन एलिमेंट्री एजुकेशन) सेकंड ईयर का एग्जाम दे रही हैं। पति 10वीं पास भी नहीं हैं।
‘ गुजरात में कुक का काम करने वाले धनंजय लंबे समय से कैंटीन में खाना बनाते थे। पिछले साल 2 दिसंबर को मेरी शादी सोनी से हुई। वे मेरे साथ ही रह रही थीं। लॉकडाउन लगा तो हमने अपने घर गोड्डा आने की कोशिश शुरू की। इसके लिए झारखंड सरकार के ऐप में फॉर्म भी भरा। वहां से बस फोन आया, लेकिन कोई मदद नहीं आई।’’
‘‘इस बीच हमारे कैंटीन के मालिक ने हम दोनों का हावड़ा तक का टिकट करा दिया। हावड़ा से गोड्डा पहुंचाने के लिए बस वाले ने 10 हजार रुपए ले लिए। जबकि हावड़ा से गोड्डा करीब 375 किमी दूर है। मेरी जमा पूंजी घर पहुंचने में ही खत्म हो गई। तीन महीने से घर में बैठा हूं।
‘‘23 अगस्त को मेरे भाई की मौत हो गई थी। मैं बोकारो में था। मेरे पास पत्नी का फोन आया कि एग्जाम की डेट आ गई है। इसके लिए ग्वालियर चलना पड़ेगा। मैंने एक दिन में भाई की अंतिम क्रिया के सारे काम निपटाए। वापस गोड्डा पहुंचा। लेकिन, ये समझ नहीं आ रहा था कि जाएंगे कैसे।’’
‘‘एक तो पैसे नहीं, ऊपर से जिस ट्रेन में टिकट कराया था, वह भी कैंसिल हो गई। पत्नी के पास पहुंचा तो वह बोली मेरे गहने गिरवी रख दो। उसके गहने गिरवी रखकर दस हजार रुपए मिले। जिस पर हर महीने 300 रुपए ब्याज देना है। 12 महीने में पैसे नहीं लौटाए तो गहने भी चले जाएंगे।’’
‘‘पैसों का इंतजाम होने के बाद हमने घरवालों से कहा कि हमारे जाने के लिए भागलपुर से गाड़ी का इंतजाम हो गया है। हम अपने घर गोड्डा से भागलपुर के लिए स्कूटी पर निकले। मुझे भी उम्मीद थी, लेकिन जब हम भागलपुर पहुंचे, तो बस वालों ने एक सवारी का ढाई हजार किराया मांगा। हमारे पास सिर्फ 10 हजार रुपए थे। मैंने पत्नी को कहा कि आप चिंता मत करो, आगे से बस मिल जाएगी। मैं उन्हें लेकर स्कूटी से ही आगे बढ़ चला। कभी रुकते, कभी चलते।’’
‘‘भागलपुर के बाहर निकलते ही चारों तरफ बस तबाही का मंजर दिखाई दे रहा था। हर तरफ बस बाढ़ का पानी ही पानी नजर आ रहा था। मैंने पत्नी से कहा- आप उधर मत देखो। मैं जब तक गाड़ी चलाऊंगा मुंह ढंककर बैठी रहना। रात के दस बज रहे थे। हम मुजफ्फरपुर पहुंच चुके थे। बारिश भी हो रही थी। दोनों गीले हो गए थे और भूख भी लग रही थी। यहां एक लॉज में 400 रुपए देकर कमरा लिया। करीब 12 बजे दोनों सोए।’’
‘‘सुबह उठे तो पत्नी बोली मेरी तबियत ठीक नहीं लग रही है। मैंने उन्हें कहा कि आप हार मत मानो, मैं आपको लेकर जाऊंगा। आपको भी कुछ नहीं होगा और हमारे बच्चे को भी। ऊपर वाला हमारा परिश्रम देख रहा है। सुबह करीब चार बजे हम दोनों लखनऊ के लिए निकल पड़े।’’
‘‘कभी लगातार बैठने के कारण तो कभी खराब रास्ते की वजह से पत्नी के पेट में दर्द उठता था, लेकिन हमने हार नहीं मानी। रात करीब नौ बजे हम लखनऊ पहुंच गए। वहां से एक्सप्रेस-वे पकड़कर ग्वालियर के लिए निकल पड़े। यहां हमें 300 रुपए टोल देना पड़ा। एक्सप्रेस-वे पर दूर-दूर तक न कोई दुकान थी, न ही कहीं पेट्रोल पंप दिख रहा था। हमारी गाड़ी इतनी गरम हो चुकी थी कि थोड़ा सा पेट्रोल डालते तो आग लग जाती। करीब डेढ़ सौ किमी चलने के बाद एक पेट्रोल पंप मिला। वहीं, एक होटल भी था।’’
‘‘हमने पेट्रोल पंप पर स्कूटी में पेट्रोल डलवाया और पेट्रोल पंप वालों से कहा कि क्या हम लोग यहां सो सकते हैं? उन्होंने कहा कि आप होटल के सामने गार्डन में सो जाइए। उस होटल का खाना भी बहुत महंगा था। हमने दो चाय पी, जिसके चालीस रुपए लगे। वहीं सो गए। सुबह उठे तो दो चाय पी और ग्वालियर के लिए निकल पड़े।’’
‘‘30 अगस्त की सुबह चार बजे हम वहां से निकले और दोपहर करीब तीन बजे ग्वालियर पहुंच गए। यहां 10 दिन के लिए 1500 रुपए का एक रूम मिला। पिछले तीन दिन से हम दोनों यहीं हैं, लेकिन अब हमें चिंता एग्जाम के बाद लौटने की है। अभी ही हमारे सात हजार से ज्यादा खर्च हो चुके हैं। देखते हैं क्या होता है… अभी 7 दिन तो यहीं रहना है। आगे भी कुछ न कुछ व्यवस्था तो हो ही जाएगी। आए हैं तो लौटेंगे भी ।