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विशेष–:( जश्न ए बचपन–:5) बच्चों ने की कल्पना की दुनिया की सैर, नदियों पर हुई कुछ यू चर्चा।

कल्पना की दुनिया की सैर

रामनगर


बुधवार स्कूली बच्चों के व्हाट्सएप्प ग्रुप” जश्न ए बचपन “में साहित्य की बारीकियों को समझने का दिन। कल बच्चो ने कल्पना की दुनिया के खुले आसमान में उड़ान भरी। दिन का संचालन साहित्य विशेषज्ञ महेश पुनेठा ने किया। चंद सवाल और उदहारण दिन को सरल व सहज तरीके से आगे बढ़ने में सफल माध्यम सिद्ध हुए।

दिन की शुरुआत महेश पुनेठा ने इस प्रकार की ” कल्पना की उड़ान भरो- एक नदी जब ऊंचे पहाड़ों से निकलकर लंबा सफर तय कर मैदानी क्षेत्र में प्रवेश करती है और वहां पहुंचकर वह दूसरी नदी में मिल जाती है, तब वह उस नदी से क्या-क्या बातें करती होगी?” कुछ देर बाद बच्चो ने दिलचस्प प्रक्रिया साझा करना शुरू कर दिया। रिया की कल्पना में भागीरथी और अलकनंदा का मिलन हुआ, तो शीतल की कल्पना में नदियां अपने साथ हो रहे बुरे रवैये के लिए विरोध करना चाह रही थी, शिवांगी जोशी की कविता में नदियां प्रदूषण पर चर्चा कर रही थी, वहीं कृति की कल्पना में नदियों को जहा एक ओर बंगाल की खाड़ी में मिलने का उत्साह था तो दूसरी ओर एक दूसरे से बिछड़ने का डर भी, आंचल की कल्पना में नदियां इंसानों को उन्हें दूषित करने के लिए सबक सिखाने की बात कर रही थी,

राधा की कल्पना में नदियां इंसानी गतिविधियों के कारण अपने रंग रूप और शुद्धता के बलिदान की व्यथा सुना रही थी, नमिषा के लेख में नदी कुछ निराश सी लग रही थी, दीपिका की कल्पना में घागरा नदी उस पर बनने वाले बांध की खबर सुन परेशान थी, साक्षी तिवारी की कल्पना में नदियों के बहन होने की बात कही गई, संदीप ने अपने लेख में सरयू और काली नदी के बीच के वार्तालाप की कल्पना की, सानवी गुप्ता की कल्पना में नदी को मैदान का वातावरण कुछ भाया नहीं, रोहित के लेख में नदी गहरी सोच में होने के कारण कुछ देर से संगम के स्थान पर पहुंचती है, दिशा पंत की कल्पना में नदियां हिम पर्वत से निकलते समय अपनी अन्य सखियों से मिलने के लिए बहुत बेताब सी प्रतीत होती है, वंशिका गोस्वामी के लेख में भी नदियां बढ़ते प्रदूषण से परेशान थी, हर्षिता भट्ट ने नदियों के अस्तित्व को खतरे में पाने की बात कही। इस बीच महेश जी ने लेखन प्रतियोगिता की खबर भी साझा की, जिसका विषय ” लॉकडाउन मेरा अनुभव” है। कुछ देर बाद महेश जी ने दिवस की दूसरी गतिविधि बच्चो को दी, साथ ही बच्चो की कल्पनाशीलता की तारीफ भी की। तो कल्पना का विषय कुछ इस प्रकार था “अगर नदियों के बीच यह संवाद न होकर एकलाप हो, पहाड़ से उतरने वाली नदी अपनी पूरी कथा मैदानी नदी को सुनाए जाय तो वह क्या सुनाएगी ? कुछ देर कल्पना के घौड़े दौड़ाने के बाद बच्चो ने मोनोलॉग साझा करना शुरू कर दिया। रिया, दीपिका, शीतल, नमीषा, राधा, कृति, निधि पंत, रोहित भट्ट, संयुक्ता बहुगुणा, दिव्यता कोहली, राशि तिवारी,शिवांगी जोशी आदि बच्चों ने अपनी कल्पनाओं को बेहतरीन लेखों में गढ़कर ग्रुप में साझा किया।

अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए महेश जी ने ग्रुप में एक यू ट्यूब वीडियो शेयर किया जो की एक हीरे की आत्मकथा थी। जिस पर ग्रुप की साथी रिया ने टिप्पणी दी “बेहतरीन कल्पना व मानवीकरण”। इसी कड़ी में कुछ समय बाद प्रेमचन्द जी की आत्मकथा का एक अंश यूट्यूब वीडियो के माध्यम से बच्चों के साथ साझा किया। साथ ही एक सवाल भी बच्चों से पूछा जो प्रेमचंद जी की आत्मकथा से ही संबंधित था। ग्रुप मेंबर्स ने इस पर अपनी प्रक्रिया दी। महत्मा गांधी जी की आत्मकथा ‘सत्य के साथ मेरे प्रयोग’ और ओमप्रकाश वाल्मीकि जी की आत्मकथा जूठन के एक भाग को भी यूट्यूब वीडियो साझा किया गया। दरअसल ये उदहारण तो महेश जी इसलिए साझा कर रहे थे कि इन विडियो को सुन बच्चों की आत्मकथा और जीवनी पर एक समझ का निर्माण हो सके। ठीक वैसा ही हुआ। महेश जी ने अपना अगला सवाल पूछा ” आत्मकथा और जीवनी में क्या अंतर है?” सभी विडियो जो भी महेश जी द्वारा ग्रुप में साझा की गई थी उन्हें सुनने के बाद जीवनी और आत्मकथा की समझ का निर्माण होना तो निश्चित ही था। परिणास्वरूप बच्चों ने सटीक प्रक्रियाएं दी। इस बीच पुनेठा जी ने हैलो हल्द्वानी की लॉकडाउन डायरी श्रृंखला में ग्रुप की साथी दीक्षा करगेती की डायरी साझा की। अन्त में डॉ भीमराव अम्बेडकर की आत्मकथा का वीडियो भी बच्चों के सुनने के लिये भी शेयर किया गया।

अगली मजेदार गतिविधि थी बचपन कर किसी यादगार प्रसंग को साझा करना। रिया, दिव्यता, शीतल, कृति, राधा, संयुक्ता अपनी शरारतों का बख़ान किया वहीं दीपिका और शिवांगी ने बेहद ही लुभावना अनुभव साझा किया। आखिर मैं महेश पुनेठा जी ने दिन का समापन कुछ इस प्रकार किया ” वाह! आप लोगों के पास कितने रोचक-रोचक प्रसंग हैं। आम बोलचाल की भाषा में अपने अनुभवों को सहज रूप से अभिव्यक्त किया है। लेखन में बेबाकी और ईमानदारी भी दिखाई देती है जो आत्मकथा के लिये एक अनिवार्य शर्त है। खुद की आलोचना के लिये भी तैयार रहना चाहिये। आत्म प्रशंसा से बचना चाहिये। केवल अपना ही जिक्र नहीं बल्कि उस समय के समाज और परिवेश का भी चित्रण करना चाहिये जैसा कि आपने ऊपर दिये गये विडियोज में सुना होगा।” ग्रुप एडमिन नवेंदु जी ने व्यवस्था बनाये रखने के लिये यह अपील की-
ग्रुप सुचारु चलाने के लिए कुछ नियम बने हैं,हम सबको उनका पालन करना ही होगा।
सीखने सीखाने के इस कारवां में प्रतिदिन नए मुसाफिर जुड़ रहे है और अन्य बच्चे भी बढ़ चढ़ कर प्रतिभाग कर रहे है। आज का दिन सिनेमा के नाम है जिसका दिशा निर्देशन सिमेना एक्सपर्ट संजय जोशी जी करेंगे।

कृति अटवाल की कलम से

नानकमत्ता पब्लिक स्कूल

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