उत्तर प्रदेश

(उत्तराखंड) बड़ी चुनौती से कम नहीं है तुलसी का हर्बल प्रेम.बेरोजगारों को आइना दिखा रही है दिव्यांग तुलसी की हर्बल नर्सरी ।।

हर्बल उत्पादों की नर्सरियों को तैयार कर बेरोजगारों को आइना दिखा रहे हैं दिव्यांग तुलसी प्रकाश , सरकारी सुविधाओं से मोहताज रखा गया है इस मेहनतकश शख्स को।

लोहाघाट – पाटी ब्लाक अंतर्गत भूमवाड़ी गांव के कठौला तोक के दिव्यांग तुलसी प्रकाश ऐसे जीवट व्यक्ति हैं जिन्होंने इंटर की पढ़ाई के बाद अपना समय बर्बाद करने के बजाय पट्टे में पिता जी को मिली भूमि में जड़ी बूटियों की खेती करना शुरू कर दिया ।करौली के सिरना बैंड से लगभग डेढ़ किलोमीटर दूर पैदल चलने के बाद दिव्यांग तुलसी की हाड़ -तोड़ मेहनत का नजारा देखकर उन्हें हर व्यक्ति सलाम करता रहा है। तुलसी ने पहले यहां तेजपात की नर्सरी से अपना काम शुरू किया उसके बाद मीठी तुलसी ,लेमन ग्रास ,रोज मैरी, अश्वगंधा, गिलोय, बड़ी इलायची ,रीठा, ब्लेंडर आदि की नर्सरी स्थापित की। आज इस व्यक्ति की मेहनत रंग दिखाने लगी है। इस दफा पहली बार उद्यान विभाग ने उन्हें पालीहाउस दिया। जबकि इससे पूर्व कृषि विभाग की ओर से एक हौज मिला जो कुछ समय बाद आपदा की चपेट में आ गया। अभी तक मात्र एक बार उद्यान, कृषि ,व भेषज संघ के लोगों के इनके यहां पांव पड़े हैं। तुलसी ने अपने पुरुषार्थ के बल पर स्वयं की तकदीर की ऐसी दास्तान जमीन में लिखी है। जिसमें उन्हें नेताओं के तमाम आश्वासन मिलने के बाद भी इनका खेती किसानी से मोहभंग नहीं हुआ ।
इनकी स्वरोजगार की यात्रा में सड़क सुविधा का ना होना सबसे बड़ी बाधा बना हुआहै। तुलसी प्रकाश का दावा है कि यदि सड़क सुविधा मिल जाए तो वह दो नहीं तीन गुना अपनी आय दिखाकर यहां मॉडल गांव की शक्ल देना चाहते हैं ।यही नही यहां सड़क आने पर सिलना, इरा, मेल्टा तोको के लोगों को भी यातायात सुविधा मिलेगी। तुलसी का इरादा कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों के सहयोग से अपने यहां उन्नत प्रजाति के माल्टा, संतरा ,नींबू आँवला, आदि की नर्सरी स्थापित करने का है। इनके पास रहने के लिए मात्र एक झोपड़ी है। इनका इरादा मौन पालन का भी है। इन्हें तत्काल पानी का हौज, रहने के लिए मकान, भूस्खलन रोकने हेतु चेक डैम, खेतों की जुताई हेतु पावर टिलर की तात्कालिक आवश्यकता है। जंगल के बीच में होने के कारण दावाग्नि, व जंगली जानवरों से अपने उद्यम को बचाने के लिए इन्हें पत्थर की चारदीवारी की भी जरूरत है। इनकी दो गाय भी ब्याई हुई है। इनके सामने दूध बेचने की भी बड़ी समस्या है। यह मेहनती किसान अपनी ब्रेन संबंधी रोग से ग्रस्त पत्नि माहेश्वरी के इलाज में अपनी जमा पूंजी लगाकर उसे जिंदा रखे हुए हैं। तुलसी इस बात से खासे नाराज हैं कि जो कर रहा है उसे तो विभागीय अधिकारी प्रोत्साहित नहीं कर रहे हैं ।जो नही कर रहा है विभाग उसे प्रोत्साहित करने की बात कर रहा हैं।

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वैज्ञानिकों ने बढ़ाया तुलसी का हौसला।

पहली बार खेती-बाड़ी और नर्सरी का नया आइडिया लेने कृषि विज्ञान केंद्र लोहाघाट पहुंचे तुलसी प्रकाश की पहली भेंट युवा वैज्ञानिक डॉ. भूपेंद्र खड़ायत व डॉ. रजनी पंत से क्या हुई कि दोनों वैज्ञानिक इस दिव्यांग मेहनती व्यक्ति के सपनों के सामने नतमस्तक होकर रह गए। तुलसी को वैज्ञानिकों का बड़ा सहारा मिल गया दोनों वैज्ञानिकों ने तुलसी के गांव जाकर उनकी मेहनत को न केवल सलाम किया बल्कि उनकी पीठ थपथपा कर उन्हें हर संभव सहयोग व सहायता देने का भी आश्वासन दिया ।दोनों वैज्ञानिकों ने अन्य किसानों के सामने तुलसी प्रकाश की इस मेहनत की चर्चा अन्य किसानों से भी की जा रही है । जिससे अन्य किसान भी उनसे प्रेरणा ले सकें ।

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