
जलवायु परिवर्तन दून ही नहीं पूरी दुनिया के लिए चुनौती : उनियाल
उत्तराखंड में विकास और पर्यावरण संतुलन की दुविधा पर चर्चा
दि पायनियर के कार्यक्रम में बोले विशेषज्ञ
देहरादून

उत्तराखंड के वन मंत्री सुबोध उनियाल ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन की घटना सिर्फ देहरादून या उत्तराखंड के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व के लिए एक चुनौती है। उन्होंने इस पहलू में वनों की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया। बुधवार को यहां द पायनियर द्वारा आयोजित

‘उद्देश्य के साथ प्रगति, हरियाली के साथ विकास- विकास और पर्यावरण संरक्षण में संतुलन’ विषय पर संवाद में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए वन मंत्री ने इस प्रासंगिक मुद्दे पर पहल की सराहना की और कहा कि इस संवाद का हिस्सा बनकर वह गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं।

उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (यूसीओएसटी) के महानिदेशक दुर्गेश पंत ने कहा कि पर्यावरण और अन्य पहलुओं से उत्तराखंड महत्वपूर्ण है। उन्होंने एशिया के पहले इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना रुड़की में किए जाने का उदाहरण दिया। इसके अलावा

औपनिवेशिक काल में भारतीय सर्वेक्षण विभाग, 1960 में भारतीय सुदूर संवेदन संस्थान और वन अनुसंधान संस्थान, भारतीय वन सर्वेक्षण और राज्य में अन्य राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण संस्थानों की स्थापना की गई। उन्होंने कहा कि यद्यपि विकास कार्यों के दौरान पर्यावरण को नुकसान पहुंचने की संभावना है, लेकिन विज्ञान और प्रौद्योगिकी के साथ-साथ जागरूकता ही विकास और संरक्षण के बीच संतुलन बनाने का समाधान है।

जलवायु परिवर्तन दून ही नहीं पूरी दुनिया के लिए चुनौती: मसूरी देहरादून विकास प्राधिकरण (एमडीडीए) के उपाध्यक्ष बंशीधर तिवारी ने कहा कि विरासत में मिले प्राकृतिक संसाधनों को भावी पीढ़ी को सौंपना सभी हितधारकों, सरकार, नागरिक समाज और प्रत्येक व्यक्ति का सामूहिक कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि विकास और संरक्षण के बीच संतुलन बनाने में आ रही समस्याओं के लिए व्यवहार में

बदलाव भी जिम्मेदार है। भारतीय मानक ब्यूरो, देहरादून के निदेशक सौरभ तिवारी ने कहा कि सभी नागरिकों को अपने जीवन में मानकों के महत्व को पहचानने पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने मानकों के महत्व पर जोर दिया। निर्माण, जल संरक्षण और अन्य पहलुओं में मानकों के बारे में बोलते हुए

उन्होंने कहा कि बीआईएस हमेशा मानक बनाने की प्रक्रिया में हितधारकों को शामिल करता है। मानवविज्ञानी और लेखक लोकेश ओहरी ने अधिकारियों से देहरादून में स्वस्थ परिपक्व पेड़ों की कटाई रोकने का आग्रह किया। उन्होंने एक उदाहरण देते हुए कहा कि अधिकारियों ने बिल्डरों को बैठक के लिए बुलाया, लेकिन नागरिकों के आर्किटेक्ट तक शामिल नहीं हुए। उन्होंने अधिकारियों से विकास योजनाओं में नागरिकों और अन्य हितधारकों को शामिल करने का आग्रह किया, साथ ही कहा कि नागरिक देहरादून में साइकिल पथ विकसित करने के लिए अधिकारियों के साथ सहयोग करने के लिए उत्सुक हैं, जो पैदल यात्रियों के लिए भी अनुकूल होगा।
पद्मश्री से सम्मानित आर्थोपेडिक सर्जन डॉ. बीकेएस संजय ने कहा कि जनसंख्या में अनियंत्रित वृद्धि प्राकृतिक संसाधनों के ह्रास और जनता के समक्ष आ रही अन्य समस्याओं के लिए जिम्मेदार प्रमुख कारक है। उन्होंने कहा कि प्रकृति मनुष्य के बिना भी फल-फूल सकती है, जबकि मनुष्य इसके बिना जीवित नहीं रह सकता। उन्होंने जोर देकर कहा कि समाज के समक्ष आ रही समस्याओं का एकमात्र समाधान सतत विकास है।
सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटीज (एसडीसी) फाउंडेशन के संस्थापक अनूप नौटियाल ने कहा कि हाल के वर्षों में उत्तराखंड में जनसंख्या विस्फोट एक चिंताजनक कारक है, जो पर्यावरण और विकास दोनों पहलुओं को प्रभावित कर रहा है। उन्होंने कहा कि देहरादून में प्रतिदिन लगभग पांच लाख किलोग्राम कचरा उत्पन्न होता है, लेकिन लाखों लोग राज्य के ग्रामीण और पर्वतीय क्षेत्रों से पलायन कर चुके हैं और कई लोग अभी भी पलायन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इसका मुख्य कारण विकास और संरक्षण के प्रयासों के बीच असंतुलन है।
संवाद में राज्य की प्रमुख हस्तियों के साथ-साथ जागरूक नागरिक और विभिन्न शैक्षणिक संस्थानों के युवा शामिल हुए।
