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बिग ब्रेकिंग–: पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने खोजी गेहूं की तीन नई किस्म, किसानों को होगा फायदा, पढ़ें पूरी खबर……….

अधिक उपज के साथ कुपोषण से निजात दिलाएंगी गेहूं की नव विकसित किस्में इनमें प्रोटीन 14.5, जस्ता 39.2 और लौह की 39.8 पीपीएम मात्रा का दावा।


पंतनगर। (सुनील श्रीवास्तव)
पंतनगर विवि के वैज्ञानिकों द्वारा विकसित गेहूं की तीन उन्नतशील किस्मों (यूपी 2903, यूपी 2938 व यूपी 2944) का हाल ही में उत्तराखंड राज्य विमोचन समिति द्वारा मैदानी (भांवर एवं तराई) क्षेत्रों में खेती के लिए अनुमोदन किया गया है। यह किस्में जहां वर्तमान प्रजातियों से 15 प्रतिशत तक अधिक उपज देने में सक्षम हैं, वहीं यह गेहूं में रतुआ अथवा गेरुई (रस्ट) बीमारी के प्रति उच्च प्रतिरोधी हैं। इन किस्मों को विकसित करने में वरिष्ठ गेहूं प्रजनक डॉ. जेपी जायसवाल, एवं गेहूं प्रजनक डॉ. स्वाति व डॉ. अनिल कुमार की आठ वर्षों की मेहनत रही है।
उत्तराखंड में रबी मौसम में उगाई जाने वाली फसलों में गेहूं सबसे महत्वपूर्ण फसल है। इसकी खेती मैदानी (भांवर एवं तराई) क्षेत्रों से लेकर पहाड़ में लगभग 1500 मीटर ऊंचाई तक की जाती है। मौसमी बदलाव के चलते फसलों में रोग एवं कीटों का प्रकोप बढ़ा है। गेहूं में रतुआ अथवा गेरुई (रस्ट) प्रमुख है। जिससे फसल को बचाने के लिए कृषक रसायनों का प्रयोग करते हैं। इसमें धन तो खर्च होता ही है, वातावरण भी प्रदूषित होता है। अतः उच्च उत्पादकता के साथ रोग एवं कीटों के प्रति अवरोधी किस्मों का निरंतर विकास खाद्यान्न उत्पादन मेंआत्मनिर्भरता बनाए रखने के लिए आवश्यक है। साथ ही सूक्ष्म पोषक तत्वों की प्रचुर मात्रा का भी होना आवश्यक है, प्रदेश के किसान इन किस्मों को अपनाकर जहां एक ओर अच्छा लाभ प्राप्त कर सकते हैं, वहीं दूसरी ओर कुपोषण की समस्या में कमी लाने में भी सहयोग कर सकते हैं।


यूपी 2903 को सिंचित दशा में समय से बुवाई (नवंबर माह) के लिए अनुमोदित किया गया है। उत्तराखंड में किसानों के खेत में इसकी उपज 57.5 क्विंटल प्रति हेक्टे. पाई गई है। जबकि इसकी उत्पादन क्षमता 70.9 क्विंटल/हेक्टे.है। इस किस्म में जहां प्रोटीन की मात्रा 12.68 है वहीं जस्ता 39.2 और लौह की मात्रा 39.8 पीपीएम विद्यमान है। यह किस्म रतुआ अथवा गेरुई (रस्ट) के प्रति उच्च प्रतिरोधी क्षमता रखती है। साथ ही यह उच्च सेडीमेंटेशन वैल्यू (59 मिली.) के
साथ अच्छी गुडवत्ता वाली ब्रेड के लिए भी उपयुक्त है।

वरिष्ठ गेहूं प्रजनन डॉक्टर डॉ जे पी जयसवाल कहते हैं
गेहूं की नव विकसित यूपी 2938 प्रजाति यूपी 2938 को भी सिंचित दशा में समय से बुवाई (नवंबर माह) के लिए
अनुमोदित किया गया है। उत्तराखंड में कृषक प्रक्षेत्रों पर आयोजित परीक्षणों में इसकी उपज 65.0 क्विंटल प्रति हेक्टे. पाई गई है। यह किस्म भी रतुआ अथवा गेरुई

(रस्ट) के प्रति उच्च प्रतिरोधी क्षमता रखती है। उच्च उत्पादन क्षमता के साथ ही इस प्रजाति का परीक्षण भार 77.0 किग्रा प्रति हेक्टोलिटर है।यूपी 2944 को सिंचित दशा में विलंब (दिसंबर माह) से बुवाई के लिए अनुमोदित किया गया है। उत्तराखंड में कृषक प्रक्षेत्रों पर आयोजित परीक्षणों में
इसकी उपज 60.0 क्विंटल प्रति हेक्टे. पाई गई है। यह किस्म भी रतुआ अथवा गेरुई (रस्ट) के प्रति उच्च प्रतिरोधी है, इसमें प्रोटीन की मात्रा 14.5 है। यह उच्च उत्पादन क्षमता के साथ ही इसका परीक्षण भार 79.6 किग्रा. प्रति हेक्टोलिटर है, तथा उच्च सेडीमेंटेशन वैल्यू (50 मिली.) के साथ अच्छी गुडवत्ता वाली ब्रेड के लिए भी यह प्रजाति उपयुक्त है।

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