उत्तराखण्ड

दुर्लभ(हल्द्वानी)नंधौर वन्यजीव अभयारण्य में पाया गया “चैंपियन ट्री” अब संरक्षण के लिए हो रहा है काम ।।

नंधौर वन्यजीव अभयारण्य के “चैंपियन ट्री” का संरक्षण: एक ऐतिहासिक पहल
हल्द्वानी

बाघ-हाथी जैसे प्रमुख वन्यजीवों के साथ विरासत वृक्षों का संरक्षण भी आवश्यक ।

वन्यजीव संरक्षण की चर्चा अक्सर बाघ, हाथी जैसे आकर्षक जीवों तक सीमित रहती है, लेकिन एक संतुलित पारिस्थितिकी तंत्र के लिए विरासत वृक्षों (Heritage Trees) का संरक्षण भी उतना ही आवश्यक है। नंधौर वन्यजीव अभयारण्य के जौलासाल रेंज में स्थित “चैंपियन ट्री”, एक विशाल सेमल (Bombax ceiba) वृक्ष, इसका सजीव उदाहरण है। 94 फीट की परिधि वाला यह वृक्ष क्षेत्र का सबसे बड़ा दर्ज सेमल वृक्ष है,


विशाल का वृक्ष के चलते इसे चैंपियन ट्री (Bombax ceiba) का नाम दिया गया है जिसकी परिधि: 94 फीट है यह: जौलासाल रेंज, नंधौर वन्यजीव अभयारण्य के अंतर्गत समुद्र तल से ऊँचाई: 239 मीटर पर स्थित है ।


जो जैव विविधता और प्राकृतिक विरासत का प्रतीक है।
2015 में यह वृक्ष वन अधिकारियों त्रिलोक सिंह बिष्ट, हेम पांडे और धर्म प्रकाश मौलखी की टीम द्वारा खोजा गया। एक समीपवर्ती नदी की धारा द्वारा लगातार कटाव (Erosion) के कारण इसकी जड़ें कमजोर हो रही थीं, जिससे यह गिरने का खतरा बढ़ गया था। इस गंभीर स्थिति को देखते हुए, डीएफओ हल्द्वानी, कुंदन कुमार ने इसे संरक्षित करने के लिए योजना बनाई। इस क्रम में नदी तट पर तार क्रेट संरचना (Wire Crate Structures) का निर्माण किया गया है ताकि चैंपियन ट्री के पास हो रहे कटाव को रोका जा सके
विरासत वृक्षों के संरक्षण का महत्व
बाघ, हाथी जैसे प्रमुख वन्यजीवों का संरक्षण आवश्यक है, लेकिन पारिस्थितिकी तंत्र के संतुलन को बनाए रखने के लिए बड़े और प्राचीन वृक्षों का संरक्षण भी उतना ही महत्वपूर्ण है।

  1. जैव विविधता (Biodiversity) के लिए आधारशिला
    विरासत वृक्ष न केवल अपनी विशालता के लिए विशेष है, बल्कि यह कई पक्षियों, कीटों, चमगादड़ों और अन्य जीवों के लिए एक महत्वपूर्ण आवास भी है। इसकी शाखाओं में घोंसले, परागण के लिए फूल, और जीवों के लिए आहार मौजूद है।
  2. जलवायु परिवर्तन और कार्बन उत्सर्जन में कमी
    प्राचीन वृक्ष कार्बन सिंक (Carbon Sink) के रूप में कार्य करते हैं, जो वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित करके जलवायु परिवर्तन को धीमा करने में मदद करते हैं। ऐसे वृक्षों का संरक्षण जलवायु संतुलन बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है।
  3. सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर
    पुराने वृक्ष किसी भी समाज की विरासत होते हैं। जिस प्रकार हम ऐतिहासिक इमारतों और मंदिरों को संरक्षित करते हैं, वैसे ही प्राचीन वृक्ष भी इतिहास के साक्षी होते हैं और हमें प्रकृति से जोड़ने का कार्य करते हैं।
  4. मृदा संरक्षण और पारिस्थितिक संतुलन
    विरासत वृक्ष की जड़ें भूमि को स्थिर रखती हैं और कटाव को रोकने में सहायक होती हैं। पास की नदी के कारण यह वृक्ष खतरे में था, इसलिए तार क्रेट संरचना द्वारा भूमि को स्थिर करके इसे बचाया गया।
    संरक्षण अभियान की सफलता
    इस वृक्ष को बचाने के लिए डीएफओ कुंदन कुमार के नेतृत्व में तार क्रेट संरचनाओं का निर्माण किया गया, जिससे भूमि कटाव रुका और वृक्ष की जड़ों को मजबूती मिली। यह पहल केवल एक वृक्ष के संरक्षण तक सीमित नहीं है, बल्कि यह भविष्य में अन्य विरासत वृक्षों को बचाने के लिए एक मॉडल भी प्रस्तुत करता है।
    “संरक्षण केवल बाघ और हाथी जैसे बड़े आकर्षक वन्यजीवों तक सीमित नहीं होना चाहिए। हमारे पुराने और विशाल वृक्ष भी जैव विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए उतने ही महत्वपूर्ण हैं। चैंपियन ट्री का संरक्षण इस बात का उदाहरण है कि विरासत वृक्षों को बचाने के लिए वैज्ञानिक और पर्यावरण-अनुकूल उपाय कितने आवश्यक हैं।”
    भविष्य की योजना
    इस पहल की सफलता को देखते हुए, वन विभाग ने वृक्ष की नियमित निगरानी और दस्तावेजीकरण की योजना बनाई है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि आने वाले दशकों तक यह जीवित और सुरक्षित बना रहे।
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आज के समय में वन्यजीव संरक्षण का अर्थ केवल प्रमुख प्रजातियों की रक्षा तक सीमित नहीं रहना चाहिए। प्राचीन वृक्ष जैसे चैंपियन ट्री भी पारिस्थितिकी तंत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, और उनका संरक्षण उतना ही आवश्यक है जितना कि किसी बाघ या हाथी का।

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