उत्तराखण्ड

बड़ी खबर(उत्तराखंड) 136 वर्षों का इतिहास देखने को मिलेगा इस रामलीला में ।।

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136 वर्षों का इतिहास संजोए बैठा है चम्पावत की रामलीला

1889 में स्व• प्रेम लाल वर्मा ने दी रामलीला की नींव

कुमाऊँ में 165 सालों का रामलीला का गौरवशाली सफर

चम्पावत में रामलीला का गौरवशाली इतिहास 136 वर्षों से संजोया गया है। वर्ष 1889 में तल्लीहाट के स्व• प्रेम लाल वर्मा के प्रयासों से इसकी शुरुआत हुई, और उस समय यह लीला नगर के दो स्थानों पर आयोजित होती थी। कुमाऊँ क्षेत्र में रामलीला का सफर और भी लंबा, 165 वर्षों से जारी है। अल्मोड़ा के बद्रेश्वर मंदिर में 1860 में स्व• देवी दत्त जोशी जी द्वारा श्रीगणेश का आयोजन इसके शुरुआती पड़ावों में से एक माना जाता है।

1889-90 में चम्पावत में रामलीला का शुभारंभ हुआ। 1891 में भीमताल से रामलीला नाटक की किताब आने के बाद तहसील क्वाटर के पास चीड़ के छिलकों से बनी स्टेज पर इसका मंचन शुरू हुआ। समय के साथ मंचन की भव्यता में बढ़ोतरी हुई—पहले पैट्रोमैक्स की रोशनी, और फिर बिजली की जगमगाहट ने रामलीला को और दीप्तिमान बना दिया।

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द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान 1939-40 में मिट्टीतेल की कमी के कारण रामलीला केवल दोपहर से अंधेरा होने तक ही हो पाई। 1941 में तत्कालीन तहसीलदार ने मिट्टीतेल की व्यवस्था कर रात में भी रामलीला सुचारु की। बाद में गौडी पावर हाउस के निर्माण के साथ बिजली की चमकदार रोशनी ने लीला को और भव्य और मनोहारी बना दिया।

चम्पावत की रामलीला में पचौली, वर्मा, साह, राय, प्रहरी, तड़ागी और पटवा परिवारों का योगदान सदियों से विशेष रहा है। नारायण लाल साह, देव सिंह तड़ागी, बसंत सिंह तड़ागी, गोपाल लाल पटवा, महेंद्र तड़ागी, सुरेंद्र तड़ागी, जगदीश वर्मा और गिरीश पटवा ने निर्देशन, स्टेज सज्जा और व्यवस्थापन में अहम भूमिका निभाई।

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अभिनय के क्षेत्र में मथुरा दत्त पचौली ने दशरथ व सुलोचना, बबलू पांडेय ने रावण, और भूवन तड़ागी व भूवन पांडेय ने सूर्पनखा के किरदार को जीवंत किया। तीन पीढ़ियों तक अमरनाथ सक्टा और उनके परिवार ने खरदूषण का रोल निभाया, जो आज भी दर्शकों की स्मृति में जिंदा है।

रामलीला स्थल में अनुशासन बनाए रखने का दायित्व राजस्व कर्मी कर्म सिंह खाती जी के हाथों था। उनकी एक आवाज—”ऐ-लौंढो”—से पूरा स्थल सन्नाटा और ध्यान में डूब जाता था।

43 वर्षों तक विभिन्न किरदार निभाने वाले जगदीश पचौली इस वर्ष रामलीला का मंचन न होने के कारण उदास हैं। रामलीला कमेटी के अध्यक्ष भगवतशरण राय ने बताया कि दर्शकों की कमी के चलते इस बार विराम लिया गया है। अगले वर्ष कमेटी का विस्तार कर हर क्षेत्र के लोगों को जोड़ते हुए रामलीला को फिर से भव्य और शानदार रूप में प्रस्तुत किया जाएगा।

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कुमाऊँ में रामलीला का इतिहास भी गौरवशाली है। अल्मोड़ा में 1860 में, नैनीताल में 1880 में, चम्पावत में 1889 में, बागेश्वर में 1890 में, लोहाघाट में 1900 में और पिथौरागढ़ में 1902 में रामलीला का मंचन हुआ। यह सांस्कृतिक परंपरा आज भी उत्तराखंड के लोक जीवन में जीवंत है।

136 वर्षों की इस विरासत में हर किरदार, हर परिवार और हर दीपक की कहानी जिंदा है, जो चम्पावत की सांस्कृतिक पहचान का गर्व बन चुकी है।

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