उत्तर प्रदेश
(हरीश रावत की बात) राज्य में भाषाओं के संरक्षण पर नहीं हुआ कार्य, हमने संस्थान बनाया संरक्षण के लिए,लेकिन वह भी भाजपा सरकार ने किया बंद।
विधानसभा चुनाव को लेकर जैसे जैसे समय नजदीक आता जा रहा है वैसे वैसे चुनाव प्रचार जहां धरातल पर चल रहा है वहीं विभिन्न सोशल प्लेटफॉर्म भी चुनाव प्रचार से सराबोर हैं कहीं ट्वीट और ध्यान खींच रहा है तो कहीं सोशल मीडिया में लिखी गई इन बातों को लोग गौर से पढ़ रहे हैं इसी कड़ी में बीते कुछ ही घंटे पहले उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लंबा चौड़ा वक्तव्य का सृजन किया वह लिखते हैं।

किसी भी भाषा को राजभाषा का दर्जा देने के लिए आवश्यक है कि उसमें साहित्य का सृजन हो, उसकी अपनी लिपि भी तैयार हो। हम उत्तराखंडवासी गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषा को 8वीं सूची में सम्मिलित करवाना चाहते थे, इसके लिये मैंने गढ़वाल और कुमाऊं विश्वविद्यालय में सेक्रेट्रीज स्थापित की, जिनमें इन भाषाओं में शोध से लेकर पठन-पाठन तक हो। मैंने पब्लिक सर्विस कमीशन को भी इस बात की सलाह दी कि वो अपने प्रश्नों का सैट तैयार करते वक्त कुमाऊंनी और गढ़वाली भाषा को कैसे प्रोत्साहित किया जा सकता है, इस हेतु प्रयास करें। जब मुझे लगा कि ये प्रयास भी ना काफी हैं तो मैंने गढ़वाली, कुमाऊंनी, जौनसारी, रंग आदि सभी उत्तराखंड की भाषाओं और बोलियों के संरक्षण और संवर्धन के लिए गौचर में एक संस्थान स्थापित किया व उसके निदेशक को नियुक्त किया और उसकी गवर्निंग बॉडी भी गठित की, संस्थान ने कार्य करना प्रारंभ कर दिया था। कांग्रेस की सरकार जाने के बाद उस संस्थान को बंद कर दिया गया, सरकार में बैठे हुए लोग एक तरफ गढ़वाली और कुमाऊंनी भाषा के बहुत पोषक अपने आपको बताते हैं और दूसरी तरफ उस क्षेत्र में जो आवश्यक व्यवस्थाएं की जानी हैं, उस हेतु उठाए गए कदमों को नकारने का काम करते हैं। इसीलिये मैं कहता हूं,
“तीन तिगाड़ा-काम बिगाड़ा,
अब उत्तराखंड में नहीं आएगी, भाजपा दोबारा।।
याद रखिए 14 फरवरी 2022,
“जय उत्तराखंड-जय उत्तराखंडियत”।।
