रूस को चाहिए सफेद बाघ का क्लोन, पंतनगर विश्वविद्यालय देगा तकनीकी सहयोग
पंतनगर, -: 2025 जंगल का सम्राट-सफेद बाघ-अब प्रयोगशाला की दीवारों के भीतर भी जन्म ले सकता है। यह सुनकर शायद चौंकें, लेकिन हकीकत यही है। रूस ने गोविंद बल्लभ पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, पंतनगर से इस दुर्लभ प्रजाति के क्लोन तैयार करने में तकनीकी मदद मांगी है। और पंत विवि ने भी इसे सिर्फ वैज्ञानिक चुनौती नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय उपलब्धि मानते हुए सहयोग देने पर हामी भर दी है।

रूस-पंतनगर: विज्ञान का नया सेतुः
पंत विवि के कुलपति डा. मनमोहन सिंह चौहान ने बताया कि रूस की सेंट पीटर्सबर्ग यूनिवर्सिटी ऑफ वेटनरी साइंस से इस संबंध में गहन बातचीत चल रही है। इसी वर्ष फरवरी में वहाँ से आए वैज्ञानिकों और छात्रों का दल पंत विवि पहुँचा था। उस दौरे के दौरान व्हाइट टाइगर क्लोनिंग पर गंभीर विमर्श हुआ और तकनीकी सहयोग पर सहमति बनी।
गिर गाय से “गंगा” और बद्री गाय तकः
डा. चौहान के नेतृत्व में पहले ही भारत की पहली क्लोन गिर गाय तैयार हो चुकी है। 16 मार्च 2023 को जन्मी इस बछिया का नाम “गंगा” रखा गया। यही नहीं, वर्तमान में उत्तराखंड की पहचान कही जाने वाली बद्री गाय को बचाने के लिए भी क्लोनिंग परियोजना प्रगति पर है। इन्हीं सफलताओं ने पंत विवि की विशेषज्ञता को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर और भी ऊँचा किया और रूस के वैज्ञानिकों को यहाँ सहयोग लेने को प्रेरित किया।
क्लोनिंग की रहस्यमयी तकनीक
रूस की सेंट पीटर्सबर्ग यूनिवर्सिटी ऑफ वेटनरी साइंस द्वारा सफेद बाघ का क्लोन तैयार करने के लिए सोमैटिक सेल न्यूक्लियर ट्रांसफर (SCNT) तकनीक का उपयोग होगा। इस प्रक्रिया में किसी कोशिका का नाभिक निकालकर उसे अंडाणु में प्रविष्ट कराया जाता है। विद्युत तरंगों की मदद से भ्रूण विकसित कर उसे जीवन देने का प्रयास किया जाता है। यह विज्ञान और प्रकृति का सबसे अद्भुत संगम है, लेकिन उतना ही जटिल और संवेदनशील भी।
रीवा से शुरू हुई दास्ताःं
भारत में सफेद बाघ का इतिहास 1951 से जुड़ा है, जब रीवा (मध्य प्रदेश) के महाराजा मार्तंड सिंह ने गोविंदगढ़ के पास से पहला व्हाइट टाइगर पकड़ा और उसका नाम “मोहन” रखा। तभी से रीवा को “सफेद शेरों की नगरी” कहा जाने लगा। आज भी रीवा की व्हाइट टाइगर सफारी दुनिया भर के पर्यटकों का मन मोह लेती है।
विज्ञान, व्यापार और पर्यटन की नई उड़ानः
विशेषज्ञों का कहना है कि यह परियोजना केवल विज्ञान की उपलब्धि भर नहीं होगी। इससे पर्यटन, वाणिज्य और जैव-विविधता संरक्षण को भी नया आयाम मिलेगा। सफेद बाघ की कीमत वैष्विक स्तर पर चार से पाँच करोड़ रुपये आँकी जाती है। रूस इसी आर्थिक और पर्यटन संभावनाओं को देखते हुए इस क्लोनिंग मिशन को आगे बढ़ा रहा है।
यह परियोजना सिर्फ एक बाघ की नहीं, बल्कि विज्ञान, संस्कृति और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की है, जहाँ जंगल की दहाड़ अब प्रयोगशालाओं में भी गूँजने की तैयारी कर रही है।

