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(विश्व धरोहर दिवस पर विशेष) अंग्रेजों का नैनीताल तक ले जाने का था ट्रेन का प्लान,लेकिन काठगोदाम रेलवे स्टेशन पर ही यह धरोहर हो गई सीमित ।।

’’विश्व धरोहर दिवस पर विशेष’’

काठगोदाम-: ऐतिहासिक और आर्थिक रूप से राज्य को पूरे देश से जोड़ने वाली पूर्वोत्तर रेलवे की रेल यात्रा की कहानी एक अनोखी और अद्भुत है 1882 से बिना विघ्न चलती हुई यह रेल को अंग्रेज नैनीताल तक ले जाने के लिए प्रयासरत थे लेकिन वह काठगोदाम तक ही सीमित रह गई जो आज पूरे देश की धड़कन में तब्दील हो गई है बरतानिया के दौर के दौरान अपने भाप के इंजन से चल कर आज आधुनिक इलेक्ट्रिक ट्रेन में तब्दील होकर यहां रेल लाखों लोगों को प्रतिदिन अपनी शुगम और सुहानी याद ताजा कर आती है आइए इसके बारे में विश्व धरोहर दिवस के दिन जानने का प्रयास करते हैं कि काठगोदाम रेलवे स्टेशन तक ब्रितानी सरकार ने किस तरह से यह ट्रेन पहुंचाई जो आज भी लोगों को अपनी सुखद अनुभूति देती है।
इसको जानने के लिए अब हमें वर्ष 1882 के बरस में जाना पड़ेगा जहां
रुहेलखंड एण्ड कुमायूँ रेलवे कम्पनी ने 12 अक्टूबर, 1882 को संविदा के अन्तर्गत भोजीपुरा से काठगोदाम रेलवे लाइन का निर्माण एवं कार्य संचालन प्रारम्भ किया। 53.92 मील लम्बाई की मुख्य लाइन थी जिसको 1882 में मंजूर किया गया और 12 अक्टूबर, 1884 को खोला गया।

बाद में, 1906 में इस लाइन का विस्तार बरेली से सोरों तक कर दिया गया। कासगंज-सोरों खंड के रेलवे लाइन का निर्माण राज्य सरकार द्वारा कानपुर-अछनेरा खण्ड का निर्माण कराते हुए किया गया। बाद में, जब रुहेलखंड एण्ड कुमायूँ रेलवे कम्पनी ने बरेली-सोरों लाइन का निर्माण किया तो सोरों-कासगंज के छोटे खण्ड को इसे हस्तांरित कर दिया गया। मुरादाबाद से काशीपुर, काशीपुर से रामनगर तथा लालकुआं से काशीपुर का विस्तार कार्य 1908 में पूर्ण किया गया। पीलीभीत से कैरोगंज और शाहबाजनगर तक रेल लाइन निर्माण 1916 तक पूरा कर लिया गया। शाहजाहाँपुर से पुवायां होकर मैलानी तक लगभग 40 मील की दूरी वाली पुवायां रेलवे लाइन को रुहेलखंड एण्ड कुमायूँ रेलवे कम्पनी द्वारा सन् 1900 में से लिया गया और 1915-16 में इसे उखाड़ दिया गया। इसकी सामग्री को 1914-1919 के प्रथम विश्व युद्ध के मध्य पूर्व थियेटर के लिए ले जाया गया।

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बरेली-कासगंज खंड (63.95 मील) को 1906 में खोला गया। इसी वर्ष राजपूताना-मालवा रेलवे से सोरों -कासगंज रेलखंड को ले लिया गया। 8 सितम्बर, 1890 की संविदा के अन्तर्गत लखनऊ-बरेली रेलवे का कार्य संचालन तथा उसे पूरा करने का दायित्व कम्पनी को हस्तांरित कर दिया गया। इस संयुक्त प्रणाली का विस्तार कम्पनी की लाइनों का कुल रेलपथ 258.72 मील और राज्य की लाइनों का रेलपथ 311.16 मील होने तक जारी रहा। वर्षो तक लखनऊ-बरेली रेलवे सहित रुहेलखंड एण्ड कुमायूँ रेलवे और तिरहुत रेलवे सहित बंगाल और उत्तर पश्चिम रेलवे एक प्रबंधन के अधीन थीं। यह व्यवस्था अवध तिरहुत रेलवेज में एकीकरण से पूर्व 31 दिसम्बर, 1942 को कम्पनी के स्वामित्व वाली दोनों प्रणालियों को सरकार द्वारा अर्जन किए जाने तक जारी रहा।

इस लाइन का पहला खण्ड भोजीपुरा-काठगोदाम 87 किलोमीटर दूरी की रेल लाइन को बरेली से जोड़ने के बाद, 12 अक्टूबर, 1884 को खोला गया। 1 जनवरी, 1891 को रुहेलखंड एण्ड कुमायूँ रेलवे कम्पनी ने लखनऊ-बरेली रेलवे को अधूरी स्थिति में अपने नियंत्रण में ले लिया।

वस्तुतः लखनऊ-बरेली खंड का कार्य रुहेलखंड एण्ड कुमायूँ रेल प्रणाली के अभिन्न अंग के रूप में किया गया।

1 जनवरी, 1943 को अवध तिरहुत रेलवे (ओ. टी. आर.) नामक नई शाखा का गठन हुआ।

यह पूर्वकाल की ओर पहले से ही बंगाल तथा उत्तर पश्चिम रेलवे (बी.एन.डब्ल्यू.आर) कम्पनियों के स्वामित्व वाली लाइनों का राज्य द्वारा अर्जन किए जाने के पश्चात सम्भव हुआ। तिरहुत स्टेट रेलवे के साथ-साथ राज्य की ओर से मशरख थावे एक्सटेंशन जिसका प्रबंध पूर्व में बी.एन.डब्ल्यू.आर. द्वारा किया जाता था और लखनऊ-बरेली रेलवे जिसका प्रबंध पहले आर के आर यानी रूहेलखंड कुमाऊं रेल द्वारा किया जाता था, को अवध एण्ड तिरहुत रेलवे के नाम से जाने जानी वाली राज्य रेल प्रणाली में सम्मलित कर दिया गया।

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रेल लाइन कासगंज से पश्चिम दिशा में 105 किलोमीटर दूर मथुरा तक गई जहाँ से यह दक्षिण में 34 किलोमीटर चलकर अछनेरा में जाकर मिली। कानपुर से टुण्डला होकर आगरा तक सीधा रेलमार्ग था, इसलिए अछनेरा से कानपुर तक रेल लाइन का निर्माण आवश्यक समझा गया। ऐसा राजपूताना-मालवा रेलवे को एक आवश्यक फीडर देने के साथ-साथ गंगा के निकटवर्ती घनी आवादी वाले क्षेत्र की सेवा के लिए किया गया। 1886 में राजपूताना-मालवा रेलवे को बी.बी.एण्ड सी.एल के हवाले कर दिया गया।

कानपुर-अछनेरा खंड का निर्माण कई चरण अर्थात कानपुर-फर्रुखाबाद, फर्रुखाबाद-हाथरस तथा हाथरस-मालवा खंड में किया गया। इसे भी बी.बी.एंड सी.एल. को दे दिया गया। टेलीग्राफ विभाग द्वारा फतेहगढ़ तक की पुरानी टेलीग्राफ लाइन को उखाड़ दिया गया और नई लाइन को रेल लाइन के साथ-साथ बिछाया गया। इस लाइन से प्रत्येक स्टेशन को जोड़ा गया। 1882-83 के दौरान अतिरिक्त साइडिंगों, आवासों का निर्माण किया गया।
रुहेलखंड एंड कुमायूँ रेलवे पर विभिन्न रेल खंडों की
मुख्य लाइनें

भोजीपुरा-काठगोदाम 12.10.1884
विस्तार
कासगंज विस्तार
बरेली से सोरों 29.01.1906
सोरों से कासगंज. 04.01.1885
रामनगर विस्तार
लालकुआ से काशीपुर 15.12.1907

शाहजहाँपुर विस्तार

पीलीभीत से बीसलपुर 24.02.1911
बीसलपुर से केरुगंज 13.01.1912
शाहबाजपुर से शाहजहाँपुर 18.03.1916
लखनऊ – बरेली रेलवे मेन लाइन
लखनऊ से सीतापुर 15.11.1886
सीतापुर से लखीमपुर 15.04.1887
लखीमपुर से गोलागोकरण नाथ 15.12.1887
गोलागोकरण नाथ से पीलीभीत 01.04.1891
पीलीभीत से भोजीपुरा 15.11.1884
भोजीपुरा से बरेली 12.10.1884
पीलीभीत से भोजपुरा 15.11.1884
शाखाएं और विस्तार
बरेली अनाज साइडिंग 01.04.1894

कौरियाला घाट विस्तार

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मैलानी से सारदा 01.01.1892
सारदा से सोहेला 10.03.1893
सोहेला से सोनारीपुर 18.03.1894
सोनारीपुर से कौरियालाघाट 02.01.1911
चंदन चैकी विस्तार
दुघवा से चंदन चौकी 01.04.1903
गौरीफंटा विस्तार
दुधवा से गौरीफंटा 15.04.1914
बरमदेव विस्तार
पीलीभीत से बरमदेव. 15.05.1912

इतिहास को आकार देने वाली तीन पीढियाँ
रेल के इतिहास में आइजट की तीन पीढियों का महत्वपूर्ण योगदान है। यही कारण है कि पूर्वोत्तर रेलवे के तीन पीढियाँ मंडलों में से एक इज्जतनगर का नामकरण उनके नाम पर हुआ है। इसके अतिरिक्त वाराणसी-इलाहाबाद लाइन पर इलाहाबाद में गंगानदी पर बने पुल को भी इज्जतपुल कहा जाता है।
इस कड़ी में से प्रथम अलैक्जेंडर आइजट बी.एन.डब्ल्यू.आर. के 1883 से 1904 तक द्वितीय एजेंट रहे, इस अवधि में ही छपरा, सीवान व गोरखपुर होते हुए सोनपुर से लखनऊ तक मुख्य लाइन बिछाई गई। ले.कर्नल डब्ल्यू. आर. आइजट जो ए.आइजट के पुत्र थे 1920 से 1927 तक बी.एन.डब्ल्यू.आर. के एजेंट रहे। उनके पुत्र सर जे.रोनी आइजेट 1941 से 1944 तक बी.एन.डब्ल्यू.आर के एजेंट रहे उन्हीं के कार्यकाल में अवध तिरहुत रेलवे सन 1942 अस्तित्व में आई वें 1944 तक प्रथम एजेंट रहे। पिता-पुत्र-पौत्र की तिकड़ी ने 131 वर्षों की अवधि तक इस रेलवे की नियति की देखभाल की। वे वर्ष पूर्वोत्तर रेलवे के निर्माण के महत्वपूर्ण वर्ष थे। यह समय अवधि पूर्वोत्तर रेलवे के इतिहास का अतिभाज्य कालखंड है।

इज्जतनगर मण्डल 1 मई, 1969 को अस्तित्व में आया। यह मण्डल उत्तर प्रदेश के 14 जिलों बरेली, बदायँू, एटा, मथुरा, महामाया नगर (हाथरस), फर्रूखाबाद, कन्नौज, काशीराम नगर, कानपुर, शाहजहाँपुर, लखीमपुर, पीलीभीत, रामपुर, मुरादाबाद एवं उत्तराखंड राज्य के 06 जिलों नैनीताल, उधमसिह नगर, बागेश्वर, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा एवं चम्पावत को रेल परिवहन सुविधा उपलब्ध कराता आ रहा है। वर्तमान में इज्जतनगर मंडल का कुल रेलपथ 1018.11 किमी है जिसमें मीटरगेज लाइन 69.14 किमी एवं बड़ी लाइन 948.97 किमी है।

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