बिन्दुखत्ता राजस्व ग्राम अधिसूचना में देरी पर वन अधिकार समिति का विरोध, मुख्यमंत्री को भेजा ज्ञापन
लालकुआँ
वन अधिकार समिति बिन्दुखत्ता ने अनुसूचित जनजाति एवं अन्य परम्परागत वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम–2006 के अंतर्गत बिन्दुखत्ता को राजस्व ग्राम घोषित किए जाने में हो रही देरी स्थानीय विधायक द्वारा दिए गए बयानों पर कड़ा विरोध जताया है। इस संबंध में समिति की ओर से मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजकर वन अधिकार कानून के अनुसार शीघ्र अधिसूचना जारी करने की मांग की गई है।
वन अधिकार समिति ने ज्ञापन में अवगत कराया कि दिनांक 17 फरवरी 2024 को उपखण्ड स्तरीय वन अधिकार समिति द्वारा बिन्दुखत्ता राजस्व ग्राम के सामूहिक दावे को स्वीकृति प्रदान की गई थी। इसके उपरांत 19 जून 2024 को जिला स्तरीय वन अधिकार समिति द्वारा संपूर्ण पत्रावली शासन को भेजी गई। रिपोर्ट में कुछ त्रुटियां पाए जाने पर ग्राम स्तरीय समिति ने सात बिंदुओं पर आंशिक संशोधन का निवेदन किया, जिसे उपखण्ड एवं जिला स्तरीय समितियों द्वारा सर्वसम्मति से स्वीकार करते हुए 20 सितंबर 2024 को अनुपूरक पत्र शासन को भेजा गया।
समिति ने बताया कि इन रिपोर्टों के आधार पर राजस्व परिषद ने भी अपनी संस्तुति सहित शासन को अधिसूचना जारी करने का प्रस्ताव भेजा। तत्कालीन मुख्य सचिव द्वारा दो बार राजस्व सचिव को बिन्दुखत्ता को राजस्व ग्राम घोषित करने के निर्देश दिए गए। साथ ही केंद्रीय जनजाति मंत्रालय, क्षेत्रीय सांसद एवं विधायकों द्वारा भी बार-बार शासन को पत्र लिखकर अधिसूचना जारी करने का अनुरोध किया गया, लेकिन इसके बावजूद आज तक अधिसूचना जारी नहीं हो सकी।
वन अधिकार समिति का कहना है कि यदि दावे में कोई कमी होती तो 25 सितंबर 2025 को शासन स्तर पर हुई बैठक के कार्यवृत्त में इसका उल्लेख अवश्य होता। समिति ने स्पष्ट किया कि उत्तराखण्ड में राजस्व ग्राम की अधिसूचना जारी करने का अधिकार केवल शासन को है और इसी प्रक्रिया के तहत पूर्व में रामनगर एवं हरिद्वार के तीन-तीन ग्रामों की अधिसूचना जारी की जा चुकी है।
ज्ञापन में यह भी आरोप लगाया गया कि 16 माह तक शासन में फाइल लंबित रखने के बाद नियम विरुद्ध तरीके से पुनः परीक्षण के लिए फाइल को जिला एवं उपखण्ड स्तरीय समितियों को भेजा गया, जिसके खिलाफ वन अधिकार अधिनियम–2006 के अंतर्गत राज्य निगरानी समिति में सात बिंदुओं पर आपत्तियां दर्ज कराई गई हैं।
इस दौरान स्थानीय विधायक डॉ. मोहन सिंह बिष्ट द्वारा यह बयान दिया गया कि बिन्दुखत्ता सहित अन्य गोठ-खत्तों के लिए सरकार नई नीति बनाने हेतु मामला कैबिनेट या सदन में लाने जा रही है, जिस पर वन अधिकार समिति ने आपत्ति जताई है। समिति का कहना है कि बिन्दुखत्ता का प्रस्ताव पहले ही जिला स्तरीय समिति से स्वीकृत हो चुका है और अब केवल अधिसूचना जारी होना शेष है। नई नीति लाने से न केवल प्रक्रिया बाधित होगी, बल्कि मामला पुनः केंद्र सरकार एवं सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच सकता है, जहां वर्ष 2000 से गोठ-खत्तों का प्रस्ताव लंबित है।
वन अधिकार समिति ने स्पष्ट किया कि वन अधिकार अधिनियम–2006 ही एकमात्र ऐसा कानून है, जिसके अंतर्गत राजस्व ग्राम घोषित करने के लिए वन भूमि के अनारक्षण की आवश्यकता नहीं होती।
अंत में समिति ने मुख्यमंत्री से मांग की कि वन अधिकार अधिनियम की धारा 3(1)(ज) के तहत स्वीकृत सामूहिक दावे के आधार पर बिन्दुखत्ता को शीघ्र राजस्व ग्राम घोषित करने की अधिसूचना जारी की जाए।
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इस बड़े कार्यक्रम में समिति के अध्यक्ष अर्जुन नाथ गोस्वामी, सचिव भुवन चन्द भट्ट, श्याम सिंह रावत, बसंत पांडे, यशवंत भट्ट, सुन्दर सिंह बिष्ट, चंचल सिंह कोरंगा,रणजीत सिंह गड़िया,बलवन्त सम्मल,ललित सिंह मेहरा, राजेश कार्की,तारा सिंह,ललित चन्द गुसाईं,भूपेश जोशी,उमेश चन्द्र, प्रमोद कॉलोनी, सहित सैकड़ो लोग उपस्थित थे।




