उत्तराखण्ड

(बड़ी खबर)संघ के सौ वर्षः पूर्वजों के सपने होते साकार, डॉ. बी. के. एस. संजय ।।


संघ के सौ वर्षः पूर्वजों के सपने साकार होते हुए

विचार से वास्तविकता तक – 100 साल की यात्रा

✍️ डॉ. बी. के. एस. संजय | 26 सितम्बर 2025


संघ का शताब्दी वर्ष

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) आज अपनी स्थापना के सौ वर्ष पूरे कर चुका है। 1925 में विजयादशमी के दिन डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा रखी गई नींव आज एक विराट वटवृक्ष के रूप में खड़ी है। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की विजय का प्रतीक दिन चुनकर शुरू हुआ यह संगठन अब दुनिया का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संगठन है।

अनुशासन, समर्पण और त्याग का संगठन

संघ का दर्शन शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक प्रशिक्षण पर आधारित है। यह संगठन अनुशासन, समर्पण और त्याग को अपना आधार मानता है। इसे कई बार प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा—1927 में ब्रिटिश शासन और स्वतंत्र भारत में 1948, 1975 और 1992 में—but हर बार संघ और मजबूत होकर सामने आया।

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आज संघ के 50 से अधिक सहयोगी संगठन और 50 लाख से ज्यादा स्वयंसेवक भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के कई देशों में सक्रिय हैं।

राजनीति से परे, पर राजनीति पर असर

हालाँकि संघ खुद को एक गैर-राजनीतिक, सामाजिक-सांस्कृतिक संगठन बताता है, लेकिन भारतीय राजनीति में उसका प्रभाव हमेशा रहा है।
भारत-पाकिस्तान विभाजन से लेकर जेपी आंदोलन, मंडल आयोग, बाबरी मस्जिद प्रकरण और राम मंदिर निर्माण तक—हर अहम राष्ट्रीय मुद्दे पर संघ की भूमिका साफ रही है।

सरसंघचालक मोहन भागवत की दृष्टि

वर्तमान सरसंघचालक मोहन भागवत का मानना है कि संघ का ध्येय भारतीय युवाओं के चरित्र निर्माण और भारतीय संस्कृति के संरक्षण में निहित है। उनका कहना है कि व्यक्ति और समाज का विकास साथ-साथ होना चाहिए ताकि राष्ट्र समृद्धि की ओर बढ़ सके।

भगवा ध्वजः शाश्वत गुरु

संघ किसी व्यक्ति या मिथकीय चरित्र की पूजा नहीं करता। स्वयंसेवकों के लिए केवल भगवा ध्वज ही शाश्वत गुरु है—सत्य और त्याग का प्रतीक। यही संघ की शक्ति और अजेयता का मूल स्रोत है।

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राष्ट्रवाद सर्वोपरि

संघ जाति, क्षेत्र या समुदाय से ऊपर उठकर राष्ट्र को केंद्र में रखता है। इसकी 50,000 से अधिक शाखाएँ आज विश्वभर में सक्रिय हैं। डॉ. हेडगेवार का मानना था कि भारत का हर बालक एक संभावित विवेकानंद या तिलक है। संघ इसी क्षमता को निखारने का प्रयास करता है।

संघ से प्रधानमंत्री तक

डॉ. हेडगेवार, माधव गोलवलकर से लेकर वर्तमान सरसंघचालक मोहन भागवत तक की यात्रा में संघ ने करोड़ों स्वयंसेवक तैयार किए। इन्हीं स्वयंसेवकों में से एक आज भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हैं, जो संघ की अनुशासन और समर्पण की परंपरा का प्रत्यक्ष उदाहरण हैं।


✍️ कविता: विकसित भारतः ध्येय हमारा

लेखक अपनी कविता के माध्यम से सभी भारतीयों और प्रवासी भारतीयों का आह्वान करते हैं—

धीर धरो प्रियवर थोड़ा सा,
रात्रि जल्द ढ़लने वाली है,
भोर शीघ्र होने वाली है।
जल्द अंधेरा मिट जाएगा,
चारों ओर प्रकाश फैलेगा।

उठो देश का मान बढ़ायें,
मातृभूमि का कर्ज चुकायें।
विकसित भारत ध्येय बनायें,
एक साथ हम हाथ मिलाएँ।

साथ-साथ हम कदम बढ़ायें,
भोग विलास छोड़कर हम सब,
कर्म करें मिलजुल कर हम सब।

गूंजे मंत्र यही घर-घर में,
उठे तिरंगा, बनें निडर हम।
होंए अग्रसर, इस पथ पर हम,
यह बल हमें दिखाना होगा।

बड़े देश अब स्वर्णिम युग में,
यह कर्तव्य निभाना होगा।

रात्रि जल्द ढ़लने वाली है,
भोर शीघ्र होने वाली है।
अंधा युग जाने वाला है,
स्वर्णिम युग आने वाला है।

बढ़े चलो सब भारतवासी,
बढ़े चलो सब भरतवंशी।


लेखक परिचय

डॉ. बी. के. एस. संजय – पद्म श्री से सम्मानित ऑर्थोपेडिक सर्जन, समाजसेवी, पीजीआई के पूर्व छात्र एवं एम्स गुवाहाटी के अध्यक्ष है।
(यह लेख लेखक के निजी विचार हैं।)


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