उत्तराखण्ड

किच्छा-: एतिहासिक गुरूद्धारा नानकपुरी टांडा साहिब की महत्ता पर ज्ञानी हरदीप सिंह ने कथा के माध्यम से डाला प्रकाश बताई महत्ता ।

ज्ञानी हरदीप सिंह ने कथा के माध्यम से सिक्खों के ऐतिहासिक गुरूद्धारा नानकपुरी टांडा साहिब की महत्ता के बारे में बताया

किच्छा, सुरजीत कामरा । सिक्खों के पवित्र स्थान गुरूद्धारा नानकपुरी टांडा साहेब में आयोजित दीवान में प्रमुख कथावाचक ज्ञानी हरदीप सिंह ने प्रकाश पर्व पर अपनी कथा के माध्यम से श्री गुरूनानक देव जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए उपस्थित संगत को निहाल कर दिया। इस दौरान उन्होने नानकपुरी टांडा साहिब गुरूद्धारे की ऐतिहासिक महत्ता के बारे में भी बखान किया। ज्ञानी हरदीप सिंह ने बताया कि प्रकाश पर्व पर उन्होने गुरू जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए अपनी कथा में कहा गुरु नानक देव जी का जन्म सन 1469 को पाकिस्तान के ननकाना साहिब में हुआ उनके पिता का नाम मेहता कल्याण दास वह माता का नाम तृप्ता जी था। गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन में चार उदासी कर हजारों मील पैदल यात्रा कर भूले भटके लोगों को सही राह दिखाई। संवत् 1554 में दुखी लोगों के आत्मिक पुकार सुनकर गुरु नानक देव जी अपने साथी भाई बाला जी वह मरदाना जी के साथ रोहिलखंड पहुंचे जहां पर गुलाम प्रथा बहुत तेजी से चल रही थी, बच्चे औरतों को बाजारों में खड़े कर पशुओं की तरह बोली लगाकर खरीदा वह बेचा जाता था। यहां पहुंचकर गुरुजी ने अपने साथी भाई बालाजी वह मरदाना जी को कुछ समय के लिए अपने से अलग कर दिया वह खुद 12 साल के बच्चे का रूप धारण कर एक पत्थर के ढेर पर बैठ गए रियासत के मालिक रहेला पठान ने जब देखा कि एक बालक सड़क के किनारे बैठा है उसे पकड़ कर अपने घर ले गया और अगले दिन बाजार ले जाकर दो घोड़ों के मूल्य के बराबर गुरु जी को बेच दिया, जिस व्यापारी ने गुरु जी को खरीदा था उसने गुरु जी को एक घड़ा देकर कुंए पर पानी भरने के लिए भेज दिया। गुरुजी की अलौकिक शक्ति से कुएं में नदियों का पानी सूख गया, गुरु जी खाली घड़ा लेकर वापस चले आए और बोले जिस कुंए से आपने पानी भरने भेजा था उसमें पानी नहीं है, साथ ही सारे नदी नहरों का पानी सूख गया और लोग पानी पीने से परेशान हो गए। जिस पर सभी ग्रामवासी इकट्ठे होकर अल्लाह ताला से इबादत करने लगे तब गुरुजी ने उन्हें समझाया कि जब तक तुम इंसानों की खरीद-फरोख्त बंद नहीं करोगे तब तक तुम्हें पानी नहीं मिलेगा। जिसे लोग समझ गए कि यह कोई आम इंसान नहीं है यह तो कोई पैगंबर है यह कोई आम बच्चा नहीं है तो स्वयं गुरु नानक देव जी है सभी ने इकट्ठे होकर गुरु नानक देव जी के चरणों पर माथा टेक अपने गुनाहों की माफी मांगी और यह प्रण किया कि आज के बाद किसी को भी गुलाम नहीं बनाएंगे गुरु जी ने सभी लोगों को समझाया कि इस तरह इंसानों को बाजार में खड़ा कर पशुओं की तरह खरीदना या बेचना सही नहीं है जहां भी लोग परमेश्वर को भूलकर अत्याचार व्यापार करते थे वही पहुंचकर गुरु नानक देव जी लोगों को परमेश्वर के नाम के साथ जोड़ने का कार्य करते थे गुलाम प्रथा को खत्म कराने के लिए गुरु नानक देव जी को रूहेलखंड में खुद तीन बार बिक कर गुलाम बनना पड़ा जिस जगह गुरु नानक देव जी को खरीदा वह बेचा गया उस जगह आजकल गुरुद्वारा नानक पुरी टांडा साहिब की सुंदर इमारत है वह एक सरोवर भी है जहां पर हर महीने अमावस का दीवान लगता है हजारों श्रद्धालु सरोवर में स्नान कर गुरुद्वारे माथा टेकते हैं वह हर दिन लंगर लगातार चलता है।

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