उत्तर प्रदेश
चैत्र नवरात्रे करें इस तरह से स्वागत व्रत एवं पूजा का है यह विधान शुभ मुहूर्त है यह।।जानिए आपके लिए अत्यंत कुछ उपयोगी बातें!
इस वर्ष अपने भारत वर्ष का नववर्ष अंग्लमास के ०२ अप्रैल २०२२, दिन शनिवार को ०१- सुबह ०६:३० से ०८:३० पूर्वाह्न से प्रारम्भ होकर ०२- सुबह १०:३० पूर्वाह्न से ११:५९ तक रहेगा पर देखा जाय तो उसका हर्षोल्लास के साथ स्वागत नही करते आज के समाज मे की वह हमारे संस्कृति धरोहर है जिसे महाराष्ट्र में “गुढ़ीपाडवा” के रूप मे मनाते है।
हम पश्चात्य सभ्यता के साथ -साथ वहा की परम्परा को अपनाते जा रहे है और अपनी संस्कृति सभ्यता धरोहर कचड़े की तरह फेकते जा रहे है,
हम अपने त्योहारो को व अपने संस्कारो को क्यों भुल रहे है? परन्तु देखा जाय तो भारत वर्ष ने विश्व को काल गणना का अद्वितीय सिद्धांत प्रदान किया है सृष्टि की संरचना के साथ ही ब्रह्मा जी ने काल चक्र का भी निर्धारण कर दिया जिसे दुनिया मानती है ग्रहों और उपग्रहों की गति का निर्धारण कर दिया जिसका उल्लेख विज्ञान भी करता है।
चार युगों की परिकल्पना, वर्ष मासों और विभिन्न तिथियों का निर्धारण काल गणना का ही प्रतिफल है यह काल कल्पना वैज्ञानिक सत्यों पर आधारित है और सोध भी हुये है मनुष्य ने काल पर अपनी अमिट छाप छोड़ने के उद्देश्य से कालचक्र को नियन्त्रित करने का भी प्रयास किया उसने विक्रम संवत्, शक-संवत्, हिजरी सन्, ईसवी सन आदि की परिकल्पना की ये तो सभी जानते है पर उस पर अमल नही किया जा रहा है।
जैन और बौद्ध मतावलंबियों ने अपने-अपने ढंग से काल गणना के सिद्धान्त बनायें, हमारे देश में नव संवत्सर का प्रारम्भ विक्रम संवत् के आधार पर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से स्वीकार किया जाता है उसी दिन नवरात्री शुभारंभ होती है और पाश्चात्य दृष्टि से पहली जनवरी को नव वर्ष का शुभारम्भ होता है जिसको हर्षोल्लास के साथ महिनो पहले से मनाना व शुभकामनाओ का ढेर लगा देते है।
अत: हमें दोनों ही दृष्टि से इस विषय पर विचार करना होगा, भारतीय मतानुसार महाराज विक्रमादित्य ने विक्रम संवत का प्रारम्भ किया था इसकी गणना चन्दन के आधार पर की जाती है इसी दिन से नवरात्र का प्रारम्भ होता है जैसा की मैने उपरोक्त मे बताया इस दिन मंदिरों और घरों में घट स्थापित किए जाते हैं जौ बोए जाते हैं और नौ दिन पश्चात् पवित्र नदियों में प्रवाहित कर दिए जाते हैं पर यह सब जैसे अब पुरातत्व की धरोहर हो गयी है गृहस्थ लोग इन दिनों मांगलिक कार्यों का आयोजन करते हैं गृह-प्रवेश, लगन-सगाई और विवाह आदि के लिए यह समय सर्वोत्तम समझा जाता रहा है पर अब इन सब पर आज-कल उपयोगिता कम होती जा रही है ऐसा क्यु?
अनेक आस्तिक लोग रामायण-पाठ का आयोजन करते हैं व्यापारी लोग नये बही खाते प्रारम्भ करते हैं नई दुकानों और व्यापारिक संस्थानों की स्थापना-उद्घाटन करते हैं क्या बस धर्मिक सिद्धान्तो से इसे जिवन मे अपनाये जाना ठीक है या इसे पुर्णत: जिवन मे उतरना कृषकों के लिए रबी की फसल की कटाई का काल प्रारम्भ होता है।
नव संवत्सर से ही ग्रीष्म ऋतु का प्रारम्भ माना जाता है पाश्चात्य मतानुसार ३१ दिसम्बर को वर्षात की घोषणा के साथ एक जनवरी से नव वर्ष मनाया जाता है पर उसे हम क्यो मनाते है जबकी हमारे कालचक्र की गणना को विश्व मानता है।
आजकल विश्व के अधिकांश देश में एक जनवरी को ही नव वर्ष मनाया जाता है एक सप्ताह पूर्व क्रिसमस के दिन से ही नव वर्ष के बधाई पत्र भेजे जाते हैं उसी प्रकार हम भी विश्व मे सबसे ज्यादा लोकप्रिय संस्कृति व संस्कार को हम मनाकर उसी प्राण प्रतिष्ठा तो बचा कर रख सकते है परन्तु नही दीपावली की भांति ही नव वर्ष पर ही अब मिठाइयां देने का प्रचलन बढ़ाया जा सकता है व्यापारिक कम्पनियां नये-नये कलैंडर छपवाती हैं और प्रचारार्थ बांटती है।
हमें भी अपने इस हिन्दू नव वर्ष को मन्यता देकर इसका बढ़ावा देना चाहिये ये हमारा कर्तव्य बनता है।
दूरदर्शन से ३१ दिसम्बर की रात को अनेक प्रकार के रंगारंग कार्यक्रमों का प्रसारण होता है जब हमारे देश के दुरदर्शन चैनलो पर पश्यात्य के पर्वो व नववर्ष पर रंगारंग कार्यक्रम करके प्रसारण करते है तो हमारे नववर्ष पर भी करे कुछ ऐसा करने का समय है सप्ताह भर पहले ही होटलों और रेस्तराँओं में अग्रिम बुकिंग हो जाती है बड़े-बड़े नगरों में पुलिस को इस दिन व्यापक बन्दोबस्त करना पड़ता है पर ऐसा क्यु क्या आजादी नाम मात्र का हमारे लिए है जबकी सारी परम्पराये परम्परागत पश्यात्य के मनाते है।
३१ दिसम्बर को जैसे ही रात्रि के बारह बजते हैं, नववर्ष की उल्लासमयी घोषणाएं प्रारम्भ हो जाती हैं पर वही उल्लासमयी भवना अपने नववर्ष पर क्यु नही पैदा होता क्या हमे गुलामी करने की आदत हो गयी है। युवक-युवतियों के समूह नाचते-गाते, मौज-मस्ती मनाते देखे जाते हैं ऐसा हम अपने हिन्दु नव वर्ष के प्रारम्भ पर क्यु नही करते की उसी दिन से पवित्रम त्योहार श्री राम नवमी की प्रतिपदा रहती है अंग्ल वर्ष मे कुछ लोग मदिरापान करके अभद्र प्रदर्शन करते हुए भी पाये जाते हैं पुलिस ऐसे लोगों को चेतावनी देकर छोड़ देती है अश्लील हरकतें करने वालों के चालान भी कर दिए जाते हैं क्या हमारे परम्परा व संस्कृति ऐसी होनी चाहीये या पवित्र मन व चारो तरफ धर्म से भरी वतावरण के साथ हमें नव वर्ष का स्वागत भारतीय दृष्टि से करनी चाहिये हमारे कार्यक्रम शालीन एवं संगत तथा राष्ट्र को जोड़ने वाले होने चाहिए जो की हमारे त्योहारो मे है हमे अपने इस हिन्दी नव वर्ष का प्रचार प्रसार करना चाहीये जिससे हमारी आने वाली पिढ़ीयॉ स्वलाम्बी शालीन व अच्छे व्यक्तित्व की रही नही तो नतिजा सबको मालुम है और कुछ पर बित भी रही होगी।
खैर छोड़ीये हमारा कहने का मतलब बस इतना था की अपने धर्म व संस्कृति को बचाकर रखे नही तो आने वाली पिढ़ीया बर्बादी वाली संस्कृति अपना लेगी जो हावी हो रही है और हमारे पर्व व संस्कृति मात्र लोग किसी किताबो मे वर्णन किया हुआ पायेगे।
आप सभी को भारतीय हिन्दू नव वर्ष की अग्रीम शुभकामनाओ के साथ यही अपेक्षा रखूगा की आप सब अपनी संस्कृति, सभ्यता, संस्कार, निति धर्म को बचाने के लिए इस पर अमल करेंगे।
कैसे मनाए चैत्री नव संवत्सर
नूतनवर्ष ? जानिए आपके लिए अत्यंत कुछ उपयोगी बातें!
चैत्र नूतन वर्ष का प्रारम्भ आनंद उल्लासमय हो इस हेतु प्रकृति माता भी सुंदर भूमिका बना देती हैं। चैत्र ही एक ऐसा महीना है, जिसमें वृक्ष तथा लताएँ पल्लवित व पुष्पित होती हैं। भारतीय हिंन्दू नववर्ष का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही माना जाता है। इस साल ०२ अप्रैल २०२२ को नूतनवर्ष प्रारंभ होगा।
अंग्रेजी नूतन वर्ष में शराब-कबाब, व्यसन, दुराचार करते हैं, लेकिन भारतीय नूतन वर्ष संयम, हर्षोल्लास से मनाया जाता है। जिससे देश में सुख, सौहार्द्र, स्वास्थ्य, शांति से जन-समाज का जीवन मंगलमय हो जाता है।
इस साल ०२ अप्रैल २०२२ दिन शनिवार को नूतन वर्ष मनाना है, भारतीय संस्कृति की दिव्यता को घर-घर पहुँचाना है।
हम भारतीय नूतन वर्ष व्यक्तिगतरूप और सामूहिक रूप से भी मना सकते हैं।
कैसे मनाएं नववर्ष ?
०१ – भारतीय नूतनवर्ष के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें। संभव हो तो चर्मरोगों से बचने के लिए तिल का तेल लगाकर स्नान करें।
०२ – नववर्षारंभ पर पुरुष धोती-कुर्ता, तथा स्त्रियां नौ गज/छह गज की साड़ी पहनें ।
०३ – मस्तक पर तिलक करके भारतीय नववर्ष का स्वागत करें ।
०४ – सूर्योदय के समय भगवान सूर्यनारायण को अर्घ्य देकर भारतीय नववर्ष का स्वागत करें ।
०५ – सुबह सूर्योदय के समय शंखध्वनि करके भारतीय नववर्ष का स्वागत करें ।
०६ – हिन्दू नववर्षारंभ दिन की शुभकामनाएं हस्तांदोलन (हैंडशेक) कर नहीं, नमस्कार कर स्वभाषा में दें।
०७ – भारतीय नूतनवर्ष के प्रथम दिन ऋतु संबंधित रोगों से बचने के लिए नीम, कालीमिर्च, मिश्री या नमक से युक्त चटनी बनाकर खुद खाएं और दूसरों को खिलाएं ।
०८ – मठ-मंदिरों, आश्रमों आदि धार्मिक स्थलों पर, घर, गाँव, स्कूल, कॉलेज, सोसायटी, अपने दुकान, कार्यालयों तथा शहर के मुख्य प्रवेश द्वारों पर भगवा ध्वजा फहराकर भारतीय नववर्ष का स्वागत करें और बंदनवार या तोरण (अशोक, आम, पीपल, नीम आदि का) बाँध के भारतीय हिन्दू नववर्ष का स्वागत करें, हमारे ऋषि-मुनियों का कहना है कि बंदनवार के नीचे से जो व्यक्ति गुजरता है उसकी ऋतु-परिवर्तन से होनेवाले संबंधित रोगों से रक्षा होती है । पहले राजा लोग अपनी प्रजाओं के साथ सामूहिक रूप से गुजरते थे ।
०९ – भारतीय नूतन वर्ष के दिन सामूहिक भजन-संकीर्तन व प्रभातफेरी का आयोजन करें ।
१० – भारतीय संस्कृति तथा गुरु-ज्ञान से, महापुरुषों के ज्ञान से सभी का जीवन उन्नत हो ।’ – इस प्रकार एक-दूसरे को बधाई संदेश देकर नववर्ष का स्वागत करें । एस.एम.एस. भी भेजें ।
११ – अपनी गरिमामयी संस्कृति की रक्षा हेतु अपने मित्रों-संबंधियों को इस पावन अवसर की स्मृति दिलाने के लिए आप बधाई-पत्र भेज सकते हैं । दूरभाष करते समय उपरोक्त सत्संकल्प दोहराएं ।
१२ – ई-मेल, ट्विटर, फेसबुक, व्हाट्सअप, इंस्टाग्राम आदि सोशल मीडिया के माध्यम से भी बधाई देकर लोगों को प्रोत्साहित करें।
१३ – नूतन वर्ष से जुड़े एतिहासिक प्रसंगों की झाकियाँ, फ्लैक्स लगाकर भी प्रचार कर सकते हैं।
१४ – सभी तरह के राजनितिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक संगठनों से संपर्क करके सामूहिक रुप से सभा आदि के द्वारा भी नववर्ष का स्वागत कर सकते हैं ।
२५ – नववर्ष संबंधित पेम्पलेट बाँटकर, न्यूज पेपरों में डालकर भी समाज तक संदेश पहुँचा सकते हैं।
सैकड़ों वर्षों के विदेशी आक्रमणों के बावजूद अपनी सनातन संस्कृति आज भी विश्व के लिए आदर्श बनी है। परन्तु पश्चिमी कल्चर के प्रभाव से भारतीय पर्वों का विकृतिकरण होते देखा जा रहा है। भारतीय संस्कृति की रक्षा एवं संवर्धन के लिए भारतीय पर्वो को बड़ी विशालता से जरूर मनाए।
चैत्रे मासि जगद् ब्रम्हाशसर्ज प्रथमेऽहनि। -ब्रम्हपुराण
अर्थात ब्रम्हाजी ने सृष्टि का निर्माण चैत्र मास के प्रथम दिन किया। इसी दिन से सतयुग का आरंभ हुआ। यहीं से हिन्दू संस्कृति के अनुसार काल गणना भी आरंभ हुई। इसी कारण इस दिन वर्षारंभ मनाया जाता है।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम एवं धर्मराज युधिष्ठिर का राजतिलक दिवस, मत्स्यावतार दिवस, वरुणावतार संत झुलेलालजी का अवतरण दिवस, सिक्खों के द्वितीय गुरु अंगददेवजी का जन्मदिवस, चैत्री (वासंतेय) नवरात्र प्रारम्भ आदि पर्वोत्सव एवं जयंतियाँ वर्ष-प्रतिपदा
से जुड़कर और अधिक महान बन गयी।
यश, कीर्ति, विजय, सुख समृद्धि हेतु घर के ऊपर झंडा या ध्वज पताका लगाएं।
हमारे शास्त्रो में झंडा या पताका लगाने का विधान है। पताका यश, कीर्ति, विजय , घर में सुख समृद्धि , शान्ति एवं पराक्रम का प्रतीक है। जिस जगह पताका या झंडा फहरता है उसके वेग से नकरात्मक उर्जा दूर चली जाती है।
हिन्दुओं में अगर सभी घरों में स्वास्तिक या धर्म के चिन्ह लगा हुआ झंडा फहरेगा तो हिन्दू समाज का यश, कीर्ति, विजय एवं पराक्रम दूर-दूर तक फैलेगा।
सभी हिन्दू घरों में वायव्य कोण यानि उत्तर पश्चिम दिशा में झंडा या ध्वजा जरूर लगाना चाहिए क्योंकि ऐसा माना जाता है कि उत्तर-पश्चिम कोण यानि वायव्य कोण में राहु का निवास माना गया है। ध्वजा या झंडा लगाने से घर में रहने वाले सदस्यों के रोग, शोक व दोष का नाश होता है और घर में सुख व समृद्धि बढ़ती है।
अतः सभी हिन्दू घरों में पीले, सिंदूरी, लाल या केसरिया रंग के कपड़े पर स्वास्तिक या ॐ लगा हुआ झंडा अवश्य लगाना चाहिए। मानसिक रूप से बीमार व्यक्ति मन्दिर के ऊपर लहराता हुआ झंडा देखे तो कई प्रकार के रोग का शमन हो जाता है ।
‘नववर्षारंभ’ त्यौहार हर्षोल्लास के साथ मनाये और अपनी संस्कृति की रक्षा करेंगे ऐसा प्रण करें।
आप सभी को नववर्ष (नव संवत्सर) की हार्दिक शुभकामनाएं.!!
“चैत्र नवरात्रे”।
कलियुगाब्दः ५१२४
शक सम्वत: १९४४
नव विक्रम संवत २०७९
नए विक्रम संवत का नाम “नल” है।
नए वर्ष का राजा शनि और मंत्री देव गुरु बृहस्पति हैं।
इस बार नवरात्रि में माता जी घोड़े पर सवार होकर आएंगी।
०२ अप्रैल २०२२ दिन शनिवार कलश स्थापना का समय इस प्रकार से रहेगा।
०१- सुबह ०६ : ३० पूर्वान्ह से ०८: ३० पूर्वाह्न तक रहेगा।
०२- सुबह १० : ३० पूर्वाह्न से ११ : ५९ पूर्वाह्न तक रहेगा।
तारीख – दिन – तिथि – नवरात्रे – देवी
०१- ०२ अप्रैल २०२२, दिन- शनिवार – प्रतिपदा तिथि – पहला नवरात्रा – शैलपुत्री देवी।
०२- ०३ अप्रैल २०२२, दिन- रविवार – द्वितीय तिथि – दूसरा नवरात्रा – ब्रह्मचारिणी देवी।
०३- ०४ अप्रैल २०२२, दिन – सोमवार – तृतीया तिथि – तीसरा नवरात्रा – चंद्रघंटा देवी।
०४- ०५ अप्रैल २०२२, दिन – मंगलवार – चतुर्थी तिथि – चौथा नवरात्रा – कुष्मांडा देवी।
०५- ०६ अप्रैल २०२२, दिन – बुधवार – पंचमी तिथि – पांचवा नवरात्रा – स्कंदमाता देवी।
०६- ०७ अप्रैल २०२२, दिन – गुरुवार – षष्ठी तिथि – छठा नवरात्रा – कात्यायनी देवी।
०७- ०८ अप्रैल २०२२, दिन – शुक्रवार – सप्तमी तिथि – सातवा नवरात्रा – कालरात्रि देवी।
०८- ०९ अप्रैल २०२२, दिन – शनिवार – अष्टमी तिथि – आठवां नवरात्रा – महागौरी देवी।
०९- १० अप्रैल २०२२,अप्रैल दिन – रविवार – नवमी तिथि – नोवा नवरात्रा – सिद्धिदात्री देवी (रामनवमी)।
१०- ११ अप्रैल २०२२, दिन – सोमवार – नवरात्रे पारायण।
११- १२ अप्रैल २०२२, दिन – मंगलवार – कामदा एकादशी व्रत।
१२- १४ अप्रैल २०२२, दिन – गुरुवार – प्रदोष व्रत।
१३- १६ अप्रैल २०२२, दिन – शनिवार – वैशाख पूर्णिमा/श्री हनुमान जयंती।
