उत्तराखण्ड

(बड़ी खबर) पंतनगर विश्वविद्यालय के सहयोग से उत्तराखंड की इस बकरी की नल को मिली विशिष्ट नस्ल की मान्यता ।।

विश्वविद्यालय द्वारा चौगर्खा नस्ल की बकरी का कराया गया पंजीकरण
पन्तनगर-: विश्वविद्यालय के पशुचिकित्सा एवं पशुविज्ञान महाविद्यालय के पशु आनुवंशिकी एवं प्रजनन विभाग ने चौगर्खा बकरी की नस्ल को आईसीएआर- एनबीएजीआर, करनाल द्वारा 7 जनवरी, 2025 को घोषित उत्तराखंड की एक विशिष्ट नस्ल के रूप में आधिकारिक तौर पर मान्यता दिला दी है। पशु आनुवंशिकी एवं प्रजनन विभाग, पंतनगर के डा. सी.वी. सिंह, डा. आर.एस. बरवाल और डा. बी.एन. शाही के नेतृत्व में वैज्ञानिकों की एक टीम इस प्रयास में शामिल थी। इस नस्ल को आईसीएआर-आईवीआरआई और अन्य योगदानकर्ताओं के साथ सह-आवेदक के रूप में पंजीकृत किया गया है। मुख्य रूप से यह अल्मोड़ा के भैंसिया छाना, धौलादेवी, धौलछीना, नौगांव, लमगड़ा और उत्तराखंड के बागेश्वर और पिथौरागढ़ जिलों के आसपास के क्षेत्र में पायी जाती है तथा समशीतोष्ण जलवायु के अनुकूल हैं। यह नस्ल आकार में छोटी होती है और मांस के उद्देश्य से पाली जाती है। चौगर्खा बकरियों का रंग काला, हल्का कथ्थई एवं सफेद होता है। पशु आनुवांशिकी और प्रजनन विभाग, अल्मोड़ा, बागेश्वर और पिथौरागढ़ जिलों के आसपास के क्षेत्रों में चौगर्खा बकरी के प्रजनन क्षेत्र में आधारभूत सर्वेक्षण करने वाला पहला विभाग है, तथा इस विभाग के वैज्ञानिकों की एक टीम वर्ष 2005 से लगातार इस नस्ल को पंजीकृत कराने के लिए काम कर रही थी। जून, 2024 में, एनबीएजीआर, करनाल द्वारा नियुक्त वैज्ञानिकों की एक टीम ने चौगर्खा बकरी के प्रजनन क्षेत्र का दौरा किया, जिसके परिणामस्वरूप इस नस्ल का पंजीकरण हुआ। इस बकरी नस्ल को कुमाऊं मंडल के बकरी पालकों द्वारा मांस के उद्देश्य से पाला जा रहा है और यह उनकी कृषि आय में पूरक है। एक नस्ल के रूप में इसे मान्यता मिलने से बकरी पालकों की बकरियों के आनुवंशिक सुधार/संरक्षण के माध्यम से इसकी उत्पादन क्षमता को बढ़ाने का रास्ता खुल गया है, ताकि इसे और अधिक लाभकारी बनाया जा सके। पशुपालन विभाग उत्तराखंड अब इस नस्ल को भी सुधार और संरक्षण के लिए राज्य बकरी प्रजनन नीति में मान्यता प्राप्त बकरी नस्ल के रूप में शामिल कर सकता है। वैज्ञानिकों की इस उपलब्धि पर पशु प्रजनन विभाग के विभागाध्यक्ष डा. डी कुमार, पशु विज्ञान महाविद्यालय के अधिष्ठाता डा. ए.एच. अहमद, निदेशक शोध डा. अजीत सिंह नैन एवं विश्वविद्यालय के कुलपति डा. मनमोहन सिंह चौहान ने बधाई दी है। वैज्ञानिकों की इस टीम को दिनांक 17 जनवरी 2025 को नई दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में नस्ल पंजीकरण प्रमाण-पत्र देने हेतु आईसीएआर-एनबीएजीआर करनाल द्वारा आमंत्रित किया गया है

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