Uttarakhand city news
इस साल मानसून कब आएगा? मानसून के दौरान कितनी बारिश होगी? मौसम विभाग की तरफ से मानसून को लेकर ऐसा पूर्वानुमान जारी किया है, जिसे जानकार हर कोई खुश हो जाएगा. दरअसल, IMD का कहना है कि इस साल मानसून की बारिश सामान्य से ज्यादा रहेगी. जिसकी शुरुआत मई माह के अंत से मानसून आने के साथ होगी तथा जून के पहले सप्ताह में उत्तराखंड में मानसून दस्तक देगा ,दावा किया गया कि देश में मानसून का असर 105 प्रतिशत रह सकता है. अगर मौसम विभाग की भविष्यवाणी सही पाई गई तो यह लगातार 10वां साल होगा जब मानसून की बारिश सामान्य या उससे ऊपर ही रही है.
दावा किया गया कि दिल्ली से लेकर पंजाब, उत्तर प्रदेश से लेकर मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र में इस साल साउथ-वेस्ट मानसून के दौरान अच्छी बारिश होगी. केरल से लेकर कर्नाटक और आंध्र प्रदेश से महाराष्ट्र तक भी इस सीजन अच्छी बारिश का अनुमान मौसम विभाग की तरफ से लगाया गया है. मौसम विज्ञान विभाग ने कहा कि यह लगातार दूसरा साल है जब IMD ने मानसून के लिए सामान्य से अधिक बारिश की भविष्यवाणी की है.
क्यों सामान्य से ज्यादा होगी बारिश?
अगर यह पूर्वानुमान सटीक साबित होता है, तो 2025 का मानसून मौसम लगातार 10वां वर्ष होगा, जब भारत में जून-सितंबर के मुख्य मानसून मौसम में सामान्य या सामान्य से अधिक बारिश दर्ज की जाएगी. IMD के महानिदेशक एम. मोहपात्रा ने बताया कि उत्तरी गोलार्ध और यूरेशिया में जनवरी-मार्च के दौरान कम हिमपात हुआ. यह मानसून के साथ उल्टा संबंध रखता है. ऐसे में यह इस मानसून में अच्छी बारिश के लिए अनुकूल परिस्थिति है. साथ ही यह भी बताया गया कि एल नीनो और हिंद महासागर डायपोल (IOD) के कारण भी मानसून पर असर पड़ता है. यह दोनों परिस्थितियां इस वक्त न्यूट्रल स्थिति में हैं. इनका पूरे मानसून सीजन में ऐसे ही रहने की उम्मीद है.
IMD अधिकारियों ने कहा कि मानसून के दौरान एल नीनो की स्थिति उत्पन्न होने की कोई संभावना नहीं है. मोहपात्रा ने बताया कि देश के अधिकांश भौगोलिक क्षेत्रों में सामान्य या सामान्य से अधिक बारिश होने की संभावना है. हालांकि, तमिलनाडु, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, त्रिपुरा, बिहार के कुछ हिस्सों और लद्दाख में सामान्य से कम बारिश हो सकती है. IMD हर साल अप्रैल और मई के अंत में दो चरणों में LRF यानी लांग पीरियड एवरेज जारी करता है. दूसरा पूर्वानुमान मई के अंत में केरल में मानसून की शुरुआत से ठीक पहले जारी किया जाएगा.।
वहीं, मौसम विभाग (सरकारी एजेंसी) ने कहा है कि इस साल 105% बारिश हो सकती है। यह “Above Normal” (सामान्य से ज्यादा) बारिश की कैटेगरी में आता है, जो 105% से 110% के बीच होती है। दोनों पूर्वानुमानों में केवल 2% का अंतर है, जो बहुत छोटा और समझने लायक है। इसका मतलब ये हुआ कि दोनों एजेंसियाँ लगभग एक जैसी बात कह रही हैं,पहली यह कि बारिश अच्छी होगी और दूसरी बात खेती के लिए अच्छी उम्मीद बनी हुई है। इसलिए इन दो पूर्वानुमानों को अलग-अलग नहीं, बल्कि एक जैसे और सकारात्मक संकेत के रूप में देखा जाना चाहिए।
मानसून का कृषि पर प्रभाव
भारत में खेती का बड़ा हिस्सा मनसून पर निर्भर करता है। यानी किसानों की फसलें इस बात पर टिकी होती हैं कि बारिश कितनी और कब होगी। इसलिए मानसून की बारिश खेती के लिए सबसे अहम फैक्टर मानी जाती है। हालांकि अर्थशास्त्री (economists) यह भी कहते हैं कि सिर्फ ये जान लेना कि इस बार बारिश सामान्य से ज्यादा (above normal) होगी, यह नहीं जताता कि फसलें अच्छी ही होंगी।
बारिश का सही समय और सही जगह पर होना जरूरी
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल (Crisil) के मुख्य अर्थशास्त्री के अनुसार, सामान्य से ऊपर वर्षा का पूर्वानुमान एक सकारात्मक संकेत है, लेकिन इससे भी ज्यादा जरूरी है वर्षा का संतुलित वितरण। बारिश का कब, कहाँ और कितनी हो रही है अगर बारिश सही समय पर सही जगह पर होती है तभी उसका फायदा खेती और किसानों को मिलता है। वर्ना ज्यादा बारिश भी नुकसान कर सकती है जैसे बाढ़ की स्थिति या फसल बर्बाद होगा।
बराबर और संतुलित बारिश से चलता है सप्लाई चेन
खेती सिर्फ फसल उगाने तक सीमित नहीं है। उसके बाद फसल को मंडी तक लाना, स्टोर करना, दूसरे राज्यों में भेजना – यह सब एक सप्लाई चेन का हिस्सा होता है। अगर बारिश हर इलाके में संतुलित तरीके से हो, तो यह सप्लाई चेन भी बेहतर तरीके से काम करता है। लेकिन अगर कहीं बहुत ज्यादा और कहीं बिल्कुल नहीं बरसी, तो दिक्कतें बढ़ जाती हैं। सामान्य या above-normal बारिश का आंकड़ा (जैसे 103% या 105%) सिर्फ एक संकेत है। असली असर तब होता है जब वो बारिश वक्त पर और जरूरत की जगहों पर हो। इसलिए बारिश का सही वितरण (distribution) ही खेती के लिए जरूरी है।

