उत्तराखण्ड

(बड़ी खबर) बहुचर्चित मासूम की हत्या और दुष्कर्म मामले में सुप्रीम कोर्ट ने मुख्य आरोपी को किया बरी।

हल्द्वानी/नई दिल्ली – साल 2014 में उत्तराखंड के पिथौरागढ़ से हल्द्वानी शादी समारोह में आई 6 वर्षीय मासूम बच्ची के साथ दुष्कर्म और हत्या के सनसनीखेज मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। निचली अदालत और हाईकोर्ट द्वारा फांसी की सजा पाए मुख्य आरोपी अख्तर अली उर्फ मकसूद को सुप्रीम कोर्ट ने साक्ष्य के अभाव में बरी कर दिया है।

क्या था मामला?
18 नवंबर 2014 को मासूम बच्ची अपने पिता के साथ हल्द्वानी के शीशमहल स्थित रामलीला मैदान में एक शादी समारोह में शामिल होने आई थी। 20 नवंबर की रात वह अन्य बच्चों के साथ खेल रही थी, तभी अचानक लापता हो गई। लगातार खोजबीन के बाद 25 नवंबर को बच्ची का शव गौला नदी के पास जंगल से बरामद हुआ। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि उसके साथ दुष्कर्म के बाद हत्या की गई थी
जनाक्रोश और राजनीतिक हलचल –
घटना के बाद पूरे कुमाऊं क्षेत्र में जनाक्रोश फैल गया था। इस नन्हीं कली हत्याकांड के बाद सड़क और ट्रेनों को जाम कर दिया गया। हल्द्वानी में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के काफिले पर भी लोगों ने हमला कर दिया था। जनता के भारी दबाव में पुलिस ने कई राज्यों में अभियान चलाकर मुख्य आरोपी अख्तर अली को चंडीगढ़ से गिरफ्तार किया। उसकी निशानदेही पर प्रेमपाल और जूनियर मसीह को भी पकड़ा गया।

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निचली अदालत से फांसी, हाईकोर्ट ने दी पुष्टि –
मार्च 2016 में हल्द्वानी की POCSO कोर्ट ने अख्तर अली को दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई, जबकि सह-आरोपी प्रेमपाल को 5 साल की सजा मिली। जूनियर मसीह को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया था। अक्टूबर 2019 में उत्तराखंड हाईकोर्ट ने भी निचली अदालत के इस फैसले को बरकरार रखा।

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सुप्रीम कोर्ट का फैसला: आरोपी को बरी किया –
सुप्रीम कोर्ट की संयुक्त पीठ ने मंगलवार को मुख्य आरोपी अख्तर अली को बरी कर दिया है। इस मामले में अभियुक्त अख्तर अली की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पेश हाईकोर्ट नैनीताल की अधिवक्ता मनीषा भंडारी ने कहा कि पूरा केस परिस्थितिजन्य सबूतों पर आधारित है सुप्रीम कोर्ट के अनुसार सबूत और सरकारी दावों को झूठ बनाया गया है। बच्ची 20 नवंबर 2024 की शाम से लापता थी। और पुलिस ने किसी संदिग्ध या मोटे आदमी का कोई जिक्र नहीं किया यह खुलासा 25 नवंबर को शव मिलने के बाद मृतक के चचेरे भाई के बयान के बाद सामने आया। अभियोजन की ओर से बताई गई कहानी को आगे बढ़ाने के लिए कोई सबूत नहीं था। आरोपित के बारे में पहले से ही एक धारणा बन चुकी थी। अधिवक्ता मनीषा ने कहा कि पीड़ित को फास्ट ट्रैक कोर्ट से न्याय दिलाने के लिए विरोध प्रदर्शन से पुलिस को एक आसान निशाना मिल गया और पुलिस ने आरोपित के विरुद्ध झूठ सबूत और गवाह बनाए मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट की संयुक्त पीठ में उक्त निर्णय पारित किया

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