उत्तराखण्ड हाई कोर्ट ने राज्य आंदोलनकारियों को 10 प्रतिशत आरक्षण न दिये जाने के मामले के खिलाफ दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की । मामले की सुनवाई जारी रखते हुए मुख्य न्यायधीश जी नरेंद्र व न्यायमूर्ती आलोक महरा की सयुक्त खण्डपीठ ने इस मामले में कल 3 जुलाई को भी सुनवाई जारी रखी है। आज हुई सुनवाई पर फिर राज्य आंदोलनकारियों की तरफ से कहा गया कि नियमावली के तहत राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी नोकरियो में 10 प्रतिशत आरक्षण नही दिया जा रहा है। जो कि सरकार की नियमावली के विरुद्ध है। इसलिए उसका लाभ उन्हें शिघ्र दिलाया जाय। जिसपर कोर्ट ने सुनवाई के बाद कल 3 जुलाई की तिथि नियत की है।
मामले के अनुसार भुवन सिंह व अन्य की तरफ से दायर जनहित याचिका में कहा गया कि सरकार राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी नौकरी में 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण दे रही है। सरकार ने इसके लिए कानून बनाया जो असंवैधानिक है। हाईकोर्ट वर्ष 2017 में सरकार की आरक्षण नीति को पहले ही खारिज और राज्य आंदोलनकारियों को मिलने वाले 10 प्रतिशत आरक्षण को खत्म कर चुकी है। इसके बाद सरकार कानून बनाकर आंदोलनकारियों को क्षैतिज आरक्षण दे रही है। राज्य सरकार की तरफ से कहा गया कि इनको पेंशन व आरक्षण देने के लिए प्रशासन ने विस्तृत रिपोर्ट बनाकर सरकार को भेजी है। सरकार द्वारा चिन्हित राज्यआंदोलनकारियों को पेंशन भी दी जा रही है। जिनका कोई नहीं था, उनके परिजनों को मृत आश्रित कोटे से आरक्षण देने की मंशा सरकार की है लेकिन उन्हें चिन्हित करना आवश्यक है इसलिए समय दिया जाए जिस पर खंडपीठ ने सरकार से विस्तृत जवाब पेश करने को कहा है।




