उत्तराखण्ड

संस्कार–: जश्न ए बचपन में शामिल हो रहे हैं बच्चे, अध्यापक समूह की अभिनव पहल,अतिथि एक्सपर्ट का बच्चे ले रहे हैं लाभ, ज्ञान की दुनिया में बच्चों ने रखा कदम।

रामनगर

उत्तराखण्ड के सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के फोरम,”रचनात्मक शिक्षक मण्डल”ने लॉकडाउन के दिनों में स्कूली बच्चों की रचनात्मकता को विकसित करने के लिए ,”जश्न ए बचपन “व्हाट्सएप्प ग्रुप का निर्माण किया है।इस ग्रुप में बच्चों की समझ को तय दिन के अनुसार सिनेमा पर दिल्ली से सिने समीक्षक संजय जोशी थियेटर पर दिल्ली से संगवारी के कपिल शर्मा,नैनीताल से जहूर आलम,साहित्य पर पिथौरागढ़ से महेश पुनेठा,ओरेगामी पर देहरादून से सुदर्शन जुयाल, पेंटिंग पर सुरेशलाल रामनगर से,कल्लोल बर्मन कोलकाता से कत्थक पर आस्था मठपाल हल्द्वानी से,तबले पर अमितांशु रुद्रपुर से,संगीत पर तुषार बिष्ट रामनगर से विकसित करते हैं।उस दिन बच्चे तय विधा पर दिन भर कुछ न कुछ एक्टिविटी करते हैं।एक दिवस परिंदों की दुनिया की सैर का भी होता है जिसे क्यारी,रामनगर से भाष्कर सती संचालित करते हैं। 140 से अधिक सदस्य संख्या वाले ग्रुप में अतिथि एक्सपर्ट्स भी आते हैं

।मई दिवस के मौके पर नानकमत्ता से डॉ कमलेश अटवाल ने ने विजुअल्स के माध्यम से काफी सारगर्भित जानकारी दी।इस ग्रुप की एक प्रतिभागी नानकमत्ता पब्लिक स्कूल की दसवीं की छात्रा रिया से जानते हैं इस ग्रुप के बाबत कुछ और जानकारी………..ऐ

राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के दौरान लाखों बच्चे घरों में बंद हैं और सीखने-सिखाने की प्रक्रिया से ज़रा दूर हो गए हैं। कुछ अपनी मर्ज़ी से और कुछ अपनी मजबूरी व असुविधा के चलते। आधुनिकीकरण और प्रौद्योगिकी के इस दौर में यह हम पर निर्भर करता है कि हम किस तरह से इन सुविधाओं का इस्तेमाल करते हैं। वरना तो आजकल व्हाट्सएप, फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया मंच, चैटिंग और अपनी प्रतिष्ठा दिखाने मात्र के ही प्लेटफॉर्म बनकर रह गए हैं। इसकी चपेट से बड़े तो बड़े, बच्चे भी नहीं बच पाए हैं। लेकिन ऐसे बहुत सारे उदाहरण हैं, जिनमे बच्चों में कम हो रही रचनात्मकता को बनाए रखने के लिए, अलग-अलग प्रयास चल रहे हैं।

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ऐसा ही एक उदाहरण है जश्न ए बचपन। उत्तराखंड के ‘रचनात्मक शिक्षक मंडल’ द्वारा बनाया गया जश्न ए बचपन व्हाट्सएप ग्रुप, प्रांत के कई बच्चों के लिए बहुत कुछ नया सीखने का स्वर्णिम अवसर साबित हुआ है। ख़ुद मेरे ही लिए यह बहुत ही बड़ा मंच है, जहाँ मैं रोज़ाना कुछ न कुछ नया सीख ही रही हूँ। अनेकों एक्सपर्ट्स के सानिध्य में सभी बच्चे व बड़े भी कुछ न कुछ नया सीख रहे हैं। सभी एक्सपर्ट्स की निस्वार्थ भागीदारी, हमें और ज़्यादा प्रतिभाग करने का बल देती है।
10 अप्रैल 2020 को श्री नवेंदु मठपाल बनाया गया यह मंच, सभी एक्सपर्ट्स के आज तक के अनुभवों को हम तक सहज ढंग से पहुंचाने के लिए काफी है। बेहद ही आसान लहज़े से सभी एक्सपर्ट्स अपनी बातों को हम तक पहुंचाते हैं। ग्रुप को व्यवस्थित तौर से चलाने के लिए अलग-अलग एक्सपर्ट्स के दिन निर्धारित कर दिए गए हैं, जिनमें वे अपनी निपुणता से बाकियों को लाभान्वित करते हैं। दिन बाँटने का यह निर्णय मुझे बेहद ही उपयुक्त लगा, क्योंकि इससे बच्चा एक ही तरह के मोड में रहेगा। उसे स्कूल की तरह झट से मोड स्विच करना नहीं होगा।

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दिन निर्धारित कर देना ही पहला ऐसा कदम है जो इस ग्रुप के सीखने की प्रक्रिया को स्कूली ढांचे से अलग करता है। जैसे स्कूल में कुछ बच्चे होते हैं, जिन्हें नियमों का पालन करना नहीं भाता, वैसे ही इस ग्रुप में कुछ ऐसे बच्चे भी शामिल हैं। उन्हें समझाने का ज़िम्मा है नवेंदु जी का। यह ऐसा मंच है जहाँ गलती करने पर शर्मिंदगी या डाँट नहीं झेलनी पड़ती, बल्कि एक और मौका दिया जाता है। यह विशेषता भी इसे बाकी सीखने-सिखाने के संस्थानों से अलग बनाती है। ग्रुप की सदस्य शीतल का कहना है कि -“मेरा मानना है कि हमें एक्सपर्ट से बहुत कुछ जानने का मौका मिला है, इतने क्षेत्रों के विद्वानों से हम कभी भी एक साथ नहीं मिल सकते थे।” सच ही कहती हैं शीतल। मुझे भी ये अपना सौभाग्य लगता है कि मैं इस मंच से जुड़ी हूँ।
इस ग्रुप में बच्चे भी काफी प्रतिभाशील हैं। समय समय पर अपनी प्रतिभा से वाक़िफ़ कराते ही रहते हैं। इन्हीं में से कुछ प्रतिभागी हैं – शीतल, डॉली, कृति, दीपिका, राधा, करनवीर और रोहित। सभी बच्चों की सक्रियता देखकर, ग्रुप के एडमिन नवेंदु मठपाल जी कहते हैं कि -“बच्चों की गतिविधियों, प्रतिभा को देख कर तो अब मन कर रहा है, पंख होते तो उड़ी-उड़ी जाती रे, हर बच्चे से मिल-मिल आती रे।” बच्चों और बड़ों की जुगलबंदी ने ही इस ग्रुप को प्रगति की दिशा में बढ़ाया है। बच्चों की रचनाओं को सराहने के बहाने, उन्हें Education Mirror. Org वेबसाइट में प्रकाशित किया जाता है। परिणामस्वरूप बाकी बच्चे भी प्रेरित होकर अपनी रचनाएं साझा करने में झिझकते नहीं हैं।

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मैं इस ग्रुप की गतिविधियों में कभी इतनी व्यस्त हो जाती हूँ, कि पता ही नहीं चलता आस-पास हो क्या रहा है। इस ग्रुप से जुड़ने और श्री महेश पुनेठा जी की साहित्य की क्लास की भागीदार बनने के बाद, मेरी लेखन शैली में भी बहुत बदलाव आया है। मेरे लेखों को देख मेरी मम्मी कहती हैं कि – “इस लॉकडाउन में तो ये लड़की लेखक ही बन गयी है।” हालांकि अभी ये तो बस शुरूआत है, पर शुरूआत ही इतनी शानदार है तो आगे का सफ़र कितना सीखने वाला होगा?

जब चारों और मार्क्स लाने का कोलाहल ही सुनाई देता हो और रचनात्मकता के लिए जगह ही न बची हो, तब जश्न ए बचपन एक उम्मीद की किरण है। इस मंच की शुरूआत ही बच्चों में रचनात्मकता बढाने के उद्देश्य से हुई थी। और इसकी सफलता भी रचनात्मकता उजागर करना हो सकती है। अगर एस्प भी अपने बच्चे को इस ग्रुप से जोड़ना चाहते हैं तो 9536572514 पर सम्पर्क करें।

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