उत्तराखण्ड

विश्व गौरैया दिवस, कोरोना वायरस के चलते नहीं मन पाया विश्व गौरैया दिवस,

हल्द्वानी

दिन पर दिन कंक्रीट के उग रहे जंगल के चलते गौरैया के अस्तित्व का संकट उत्पन्न हो गया है। वन विभाग एवं गौरैया प्रेमी पिछले कई सालों से एक अभियान चलाकर इसके संरक्षण पर काम कर रहे है यहां तक एनजीओं के द्वारा स्कूली बच्चों को घोसले बांटकर इसके संरक्षण पर जोर दिया जा रहा है । वन संरक्षक पश्चिमी वृत डा0 पराग मधुकर धकाते कहते है घरेलू गौरैया बेतरतीव विकास एवं बढ रहे कंक्रीट के जंगल के कारण अपने अस्तित्व के लिए संर्घष कर रही है। वन विभाग ने इसके संरक्षण के लिए जनजागरूकता बढानें के साथ निशुल्क घोसले भी बांट रहां है। तथा हर वर्ष विश्व गौरैया दिवस पर कार्यक्रम आयोजित कर बच्चों को जागरूक भी करता है। यू तो शहरी क्षेत्र मे गौरैया पूरी तरह से विलुप्त हो गई है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों मे अभी भी गौरैया देखने को मिल रही है जिसके बाद ग्रामीण क्षेत्रों मे भी उनके संरक्षण पर जोर दिया जा रहा है।
जिम कार्बेट नेशनल पार्क के डायरेक्टर राहुल ने बताया कि सामान्य तौर पर यहां पर हाउस स्पैरो, ट्री स्पैरो, रसेट स्पैरो,स्पीसिज है लेकिन अब वह भी तेजी के साथ विलुप्त हो रही है जिसके संरक्षण पर जोर दिया जा रहा है।
वन्यजीव एवं बर्ड वाच पर कार्य करने वाले जिम कार्बेट नेशनल पार्क के प्रमुख फोटोग्राफर दीप रजवार का कहना है कि गौरैया यूरोप और एशिया मे हर जगह पायी जाती है। इसके अतिरिक्त पूरे विश्व में जहाँ-जहाँ मनुष्य गया इसने उनका अनुकरण किया विश्व में गौरैया की छह तरह ही प्रजातियां पाई जाती हैं। यें हाउस स्पैरो, स्पेनिश स्पैरो, सिंड स्पैरो, रसेट स्पैरो, डेड सी स्पैरो और ट्री स्पैरो। इनमें हाउस स्पैरो को गौरैया कहा जाता है। यह शहरों में पाई जाती हैं। आज यह विश्व में सबसे अधिक पाए जाने वाले पक्षियों में से एक है लेकिन यह तेजी के साथ विलुप्त हो रही है आज लोग जहाँ भी घर बनाते हैं देर सबेर गौरैया के जोड़े वहाँ रहने पहुँच ही जाते हैं।
दीप कहते है गौरैया के वासस्थल से छेडछाड ही उनकी कमी का कारण है मोबाइल टावरों से निकले वाली तंरगों को भी गौरैयों के लिए हानिकारक माना जा रहा है। ये तंरगें चिड़िया की दिशा खोजने वाली प्रणाली को प्रभावित कर रही है और इनके प्रजनन पर भी विपरीत असर पड़ रहा है जिसके परिणाम स्वरूप गौरैया तेजी से विलुप्त हो रही है।

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