उधमसिंह नगर

मत्स्य क्षेत्र से भूख, गरीबी व मानव सेहत का रखा जा सकता है ध्यान, अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में बोले वैज्ञानिक।

पंतनगर में जलीय पारिस्थितिकी पर सम्मेलन प्रारम्भ 

पंतनगर
 पंतनगर विश्वविद्यालय में मत्स्य विज्ञान महाविद्यालय के तत्वाधान मे ‘भारतीय अन्तस्र्थलीय जलीय परिस्थितिकी का स्वास्थ्य एवं मात्स्यिकी विभिन्न तनाव कारक, प्रबंधन एवं संरक्षण’ विषय पर तीन-दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन गांधी हाल में आयोजित हुआं।
 डा. जे.के. जेना, ने इस अवसर पर बोलते हुए कहा कि जलीय पारिस्थितिकी का स्वास्थ्य उसमें उपस्थित मछलियों की संख्या व उत्पादन से लगाया जाता है, जबकि उसमें अन्य कई जलीय जीव भी विद्यमान होते हैं। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ लाख वर्षों में जलीय एवं अन्य जीवों में विविधता का विकास हुआ है, किन्तु आज वातावरणीय बदलाव एवं अन्य कारणों इस विविधता में ह्रास हो रहा है। डा. जेना ने कहा कि जलीय पारिस्थितिकीय की ओर विशेष ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है, ताकि इस विविधता का संरक्षण किया जा सके।

उन्होंने यह भी कहा कि वर्तमान में इस संबंध में आंकड़ों की अत्यन्त कमी है, जिस कारण कोई सफल रणनीति बनाया जाना चुनौती भरा है। डा. जेना का कहना था कि अकेले मत्स्य क्षेत्र से भूख, गरीबी व मानव सेहत का ध्यान रखा जा सकता है। 

अपने अध्यक्षीय संबोधन में कुलपति डा. तेज प्रताप ने कहा कि सम्मेलन का विषय पारिस्थितिकी होने के कारण यह विभिन्न विषयों का समन्वय करता है तथा इसकी सेहत का ध्यान रखना जरूरी है। उन्होंने कहा कि जलीय पारिस्थितिकी अच्छी हालत में नही है, जिसका मुख्य कारण शहरीकरण एवं विकास है। कुलपति ने कहा कि हम समाज कल्याण की ओर देखने के कारण जलीय पारिस्थितिकी को हो रहे नुकसान की ओर नही देख पा रहे हैं। साथ ही मत्स्य उत्पाद की मांग बढ़ने के कारण भी जलीय पारिस्थितिकी एवं विविधता की हानि हो रही है। डा. तेज प्रताप ने यह भी कहा कि भविष्य में इस विषय में षिक्षण एवं शोध के मुद्दांे को चिन्हित करना व उसपर कार्य करना आवष्यक है, ताकि मात्स्यिकी के क्षेत्र में मानव संसाधन का उचित विकास हो सके।  


डा. मुनावर ने जलीय पर्यावरण एवं स्वास्थ्य प्रबंधन समिति के बारे में बताते हुए कहा कि यह समिति अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर जागरूकता कार्यक्रम के द्वारा वैष्विक जलीय संसाधनों के संरक्षण एवं नयी पहल को प्रोत्साहित करती है। डा. बी.के. दास ने कहा कि अन्तस्र्थलीय मात्स्यिकी का किसानों की आय को दोगुना करने में बड़ा योगदान है। डा. गोपाल कृष्ण ने वर्तमान में मत्स्य पालन के दौरान होने वाली समस्याओं को बताया तथा उनके समाधान हेतु प्रयासों की समीक्षा की। उन्होंने छः संस्थानों द्वारा मिलकर इस सम्मेलन का आयोजन किये जाने पर प्रसन्नता प्रकट की। इससे पूर्व कुलसचिव डा. शर्मा ने अतिथिगणों का स्वागत किया एवं सम्मेलन की रूप-रेखा बतायी। कार्यक्रम के अंत में डा. ए.के. उपाध्याय द्वारा धन्यवाद प्रस्तुत किया गया। 
इस कार्यक्रम के दौरान अतिथियों द्वारा स्मारिका एवं अन्य साहित्यों का विमोचन भी किया गया। इस अवसर पर क्षेत्र के प्रगतिशील मत्स्य पालको को भी उनके उत्कृष्ठ कार्यों के लिए अतिथियों द्वारा सम्मानित किया गया, जिनमें श्रीमती रीता देवी, श्रीमती मधु देवी एवं श्रीमती रेखी राना, ग्राम-कटघरिया, सितारगंज; श्री गजेन्द्र टमटा, हल्द्वानी; श्री हेमचंद्र आर्या, नैनीताल; एवं श्री रजत कचूरा, रूद्रपुर थे। व्यावसायिक मत्स्य स्नातक मंच, मुम्बई द्वारा वर्ष 2017-18 एवं 2018-19 के लिए देष के विभिन्न मत्स्य महाविद्यालयों के उत्कृष्ट विद्यार्थियों को स्मृति चिन्ह एवं प्रमाण-पत्र देकर पुरस्कृत किया गया। यह कार्यक्रम पंतनगर विष्वविद्यालय के अतिरिक्त भारतीय अन्तस्र्थलीय मात्स्यिकी समिति; भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के केन्द्रीय अन्तस्र्थलीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान, बैरकपुर; जलीय पर्यावरण एवं स्वास्थ्य प्रबंधन समिति, कनाडा तथा व्यवसायिक मत्स्य स्नातक मंच, मुम्बई, द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया। इस सम्मेलन का तीन दिनों में पांच तकनीकी सत्रों का आयोजन किया जायेगा।  इस अवसर पर देष एवं विदेष के उच्च षिक्षण एवं अनुंसधान संस्थानों के लगभग 250 वैज्ञानिक, शिक्षाविद, शोधार्थी एवं उत्तराखण्ड राज्य के लगभग 100 मत्स्य पालक एवं कृषक उपस्थित थे।  
 कार्यक्रम में केन्द्रीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान, मुम्बई, के निदेषक एवं कुलपति, डा. गोपाल कृष्ण,डा. बी.के. दास, निदेषक, केन्द्रीय अन्तस्र्थलीय मात्स्यिकी अनुसंधान संस्थान, बैरकपुर; डा. एम. मुनावर, अध्यक्ष, जलीय पर्यावरण एवं स्वास्थ्य प्रबंधन समिति, कनाडा; कार्यक्रम के सह-संयोजक एवं कुलसचिव डा. ए.पी. शर्मा, तथा अधिष्ठाता मत्स्य विज्ञान महाविद्यालय डा. ए.के. उपाध्याय उपस्थित थे।

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