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ब्रेकिंग-:भारत की पहली महिला क्रिकेट कमेंटेटर का हुआ निधन,आज ली अंतिम सांस, 88 वर्ष की थी चंद्रा ।।

इंदौर
भारतीय क्रिकेट टीम के पहले कप्तान कर्नल सीके नायडू की पुत्री और देश की जानी-मानी महिला क्रिकेट कॉमेंटेटर चंद्र नायडू का आज निधन हो गया।
चंद्रा नायडू अंग्रेजी की रिटायर्ड अध्यापक थी तथा उन्होंने अपने पिता महान क्रिकेटर सी के नायडू पर पुस्तक भी लिखी थी जिसका शीर्षक द डॉटर रेमेम्बर्स था ।।
उनके के निधन पर क्रिकेट जगत में शोक की लहर दौड़ पड़ी।

देश की पहली महिला क्रिकेट कमेंटेटर चंद्रा नायडू का 88 वर्ष की आयु में इंदौर में रविवार को निधन हो गया। वे अविवाहित थीं और लंबे समय से बीमार थीं। भारतीय क्रिकेट टीम के पहले कप्तान कर्नल सीके नायडू के बेटी होने के अलावा उनकी अपनी पहचान अलग थी।
अंग्रेजी की प्रोफेसर होने के बावजूद हिंदी भाषा पर उनकी अच्छी पकड़ थी। ख्यात हिंदी कमेंट्रेटर पद्मश्री सुशील दोषी को भी उन्होंने बतौर कमेंटेटर प्रोत्साहित किया। दोषी के अनुसार उन्होंने अपनी पहली कमेंट्री नेहरू स्टेडियम में मेरे साथ ही की थी। दोषी ने बताया कि जब पहली बार 1977-78 में ऑस्ट्रेलिया कमेंट्री करने गया तो उन्होंने मुझे पत्र लिखकर मेरा हौसला बढ़ाया था। मुझे भी उनके साथ कमेंट्री करने का मौका मिला। कर्नल नायडू कहा करते थे कि चंद्रा मेरी बेटी नहीं बेटा है। उसमें भी आत्मसम्मान की भावना और संघर्ष की क्षमता है।

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भतीजे विजय नायडू ने बताया कि 1950-60 के दशक में वे क्रिकेट खेला करती थीं और उन्होंने मप्र में महिला क्रिकेट को आगे बढ़ाने में बहुत मेहनत की। उस दौर में लड़कियां क्रिकेट में बहुत कम थीं। तब सलवार कमीज पहनकर महिला खिलाड़ियों के खेलने का प्रचलन था। किसी अंतरराष्ट्रीय मैच में कमेंट्री करने वाली पहली महिला होने का गौरव उन्हें प्राप्त था। वे कई सामाजिक संगठनों से भी जुड़ी थीं।

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बीसीसीआइ के पूर्व सचिव संजय जगदाले ने बताया कि वे लंबे समय से बीमार थीं। जब मैं रणजी ट्राफी में खेला करता था तो वे कमेंट्री करती थीं। मप्र क्रिकेट संगठन (एमपीसीए) की भी सदस्य थीं। पहले महिला क्रिकेट नहीं होता था, उस दौर में उन्होंने महिला क्रिकेट की शुरुआत की और खिलाड़ियों को प्रोत्साहित किया। जब इंदौर में पहली बार टेस्ट मैच हुआ तो उनके पिता कर्नल नायडू की पहली किट सभी के लिए प्रदर्शित की गई थी। तब उन्हें भी आमंत्रित किया गया था। मगर सेहत ठीक नहीं होने से वे नहीं आ सकी थीं। वे घर पर ही रहती थीं और कम ही लोगों से मिलना होता था।

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