हल्द्वानी में देश की पहली रामायण वाटिका का लोकार्पण
हल्द्वानी।
उत्तराखण्ड वानिकी अनुसंधान संस्थान के हल्द्वानी स्थित मुख्यालय परिसर में मुख्य वन संरक्षक संजीव चतुर्वेदी ने मंगलवार को देश की पहली रामायण वाटिका का लोकार्पण किया।
यह वाटिका 1 एकड़ क्षेत्र में फैली है और इसके जरिए वाल्मिकी रामायण के अनछुए पहलुओं को लोगों के समक्ष लाने का प्रयास किया गया है।
वाटिका के निर्माण हेतु प्रदेश सरकार से किसी प्रकार की वित्तीय सहायता नहीं ली गयी है और अनुसंधान संस्थान के अधिकारियों एवं कर्मचारियों के आपसी सहयोग से इसका निर्माण हुआ है।
श्री चतुर्वेदी ने बताया कि वाल्मिकी रामायण में जैव विविधता,औषधीय पौंधों तथा जड़ी-बूटियों की विभिन्न प्रजातियों का वर्णन किया गया है।
लिहाजा रामायण वाटिका के जरिए वाल्मिकी रामायण के उन्हीं अनछुए पहलुओं को आम जनमानस के समक्ष लाने का प्रयास किया गया है।
रामायण में छह प्रकार के वनों चित्रकूट, दंडकारण्य, पंचवटी,किष्किंधा,अशोक वाटिका और द्रोणगिरि का वर्णन है।
रामायण में वर्णित इन वनों में वर्तमान में भी पाये जाने वाले पेड़ों की विभिन्न प्रजातियों को वानिकी अनुसंधान की हल्द्वानी और लालकुआं पौंधशालाओं में तैयार कर वाटिका में लगाया गया है।
वनाधिकारी ने बताया चित्रकूट क्षेत्र में पाये जाने वाले आम,बाह्मी और बांस के पेड़ों का यहां रोपण किया गया है।वर्तमान समय के दंडकारण्य छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में मिलने वाले साल व सागौन,महाराष्ट्र के नासिक जिले में पंचवटी क्षेत्र की पांचों प्रमुख प्रजातियों
बरगद,नीम,पीपल,अशोक और बेल,वर्तमान समय के किष्किंधा कर्नाटक तथा आंध्र प्रदेश की सीमा पर बेल्लारी क्षेत्र में पाये जाने वाले चंदन और रक्त चंदन पेड़ों को वाटिका में जगह दी गई है।
श्री चतुर्वेदी ने बताया कि रामायण के अनुसार अशोक वाटिका की मुख्य प्रजाति और वर्तमान में भारत के पश्चिमी घाट तथा श्रीलंका में पायी जाने वाली प्रजाति सीता अशोक के साथ ही श्रीलंका के राष्ट्रीय वृक्ष नागकेसर को भी रामायण वाटिका में रोपित किया गया है।
श्री चतुर्वेदी कहते हैं ‘रामायण वाटिका का निर्माण अनुसंधान संस्थान के अधिकारियों एवं कर्मचारियों के मिश्रित सहयोग का परिणाम है’