उत्तराखण्ड

फसल अनुसंधान–: धान की सीधी बुवाई से होगा लाभ, पानी की बचत एवं होगा अधिक उत्पादन

कुलपति ने किया धान की सीधी बिजाई प्रक्षेत्र का भ्रमण

पंतनगर
पंतनगर विश्वविद्यालय के नारमन ई. बोरलाॅग फसल अनुसंधान केन्द्र पर धान की सीधी बिजाई प्रक्षेत्र का भ्रमण आज कुलपति, डा. तेज प्रताप द्वारा किया गया। इस अवसर पर डा. तेज प्रताप ने बताया कि सामान्यतः धान की खेती रोपण विधि द्वारा की जाती है, जिससे लागत एवं संसाधन की अधिक आवश्यकता होती है। उन्होंने बताया कि सीधी बुवाई करने से 25 से 30 प्रतिशत कम जल का उपयोग होता है और उत्पादन भी अच्छा प्राप्त होता है। डा. प्रताप ने कहा कि समय की मांग के अनुसार समस्त फसल के साथ संरक्षित खेती प्रक्रिया को भी अपनाने की आवश्यकता है जिससे कम समय, कम लागत एवं कम प्रक्षेत्र से अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। डा. प्रताप ने बताया कि इस प्रकार की तकनीक को अपनाकर प्राकृतिक संसाधनों के दोहन से छुटकारा प्राप्त होगा और कृषि भी टिकाऊ बनेगी।
निदेशक शोध, डा. ए.एस. नैन, ने बताया की इस वर्ष फसल अनुसंधान केन्द्र पर 40 हैक्टेयर प्रक्षेत्र में धान की सीधी बिजाई कर प्रजनक बीजोत्पादन किया गया। उन्होंने बताया कि इस फसल के उपरांत उन प्रक्षेत्र में शून्य जुताई या सुपर सीडर से गेहूं की बिजाई कर उतना ही उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है जितना पारम्परिक विधि की गेहूं की बिजाई करने से प्राप्त होता है। डा. नैन ने बताया कि अगर वैज्ञानिक विधि से धान की सीधी बुवाई की जाय तो फसल 8 से 10 दिन पहले परिपक्व हो जाती है एवं उत्पादन 3 से 5 प्रतिशत ज्यादा प्राप्त होता है।
फसल अनुसंधान केन्द्र के संयुक्त निदेशक, डा. वी. प्रताप सिंह ने धान की सीधी बुवाई हेतु प्रमुख बिन्दु एवं वैज्ञानिक बातें बतायी। भ्रमण के दौरान महाप्रबंधक फार्म, डा. डी.के. सिंह; सहनिदेशक, फसल अनुसंधान केन्द्र, डा. आर.पी. मौर्य; एवं अन्य वैज्ञानिक उपस्थित थे।

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