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धीरे-धीरे समाप्त हो रही है कुआं पूजन प्रथा

क्या अब कुआँ की जरूरत नहीं रही
क्या होगा हिंदू रीति रिवाज के विवाह के समय
कुआं वारा की प्रथा समाप्त हो जाएगी
सफाई कर्मचारी के लिए बना एक अच्छा कूड़ादान

   विश्व कान्त त्रिपाठी

पलिया कला लखीमपुर खीरी।

बुजुर्गों की बात माने तो पीने का पानी केवल कुआं से ही मिलता था। हर गांव में दो से चार कुआँ हुआ करते थे उन्हें कुआं से पीने से लेकर नहाने तक एवं जानवरों के लिए पानी कुआँ से ही मिलता था।
और हिंदू रीति-रिवाज के अनुसार जब वर विवाह के लिए तैयार होता है तो एक प्रथा कुआवारा के नाम से की जाती है।
अब सवाल यह उठता है कि अब कुंए तो समाप्त किए जा रहे हैं क्या प्रथाएं भी समाप्त हो जाएंगी अगर नहीं तो इस ओर किसी का ध्यान क्यों नहीं जा रहा है।
ऐसे ही प्रकरण में बहुत सारे दफ्तरों में, तहसीलों में, ब्लाकों में, थानों में , लगभग कुआं हर जगह है और धीरे-धीरे उसको कागजों से कूड़ा करकटों से पाटा जा रहा है क्या उस संबंधित दफ्तर से संबंध रखने वाले अधिकारी क्या यह देखते नहीं होंगे या देखते हैं उसको नजरअंदाज कर देते हैं अगर नहीं तो देखिए जनाब यह फोटो छोटी -बड़ी सैकडो रियासतों का गढ कहे जाने वाले जनपद लखीमपुर उत्तर प्रदेश की तहसील पलिया कला मे कुआं धीरे-धीरे कागजों एव कूडे से पाटा जा रहा है।
बताते चलें कि सफाई कर्मचारियों के लिए कूड़ा कागज डालने के लिए बहुत दूर जाना नहीं पड़ता क्योंकि यह कुआ तहसील प्रांगण में ही है और वह इसका भरपूर इस्तेमाल कर रहे हैं।
सफाई कर्मचारियों के अलावा यहां के उच्चाधिकारी भी कहीं ना कहीं इसके जिम्मेदार है खैर कार्यवाही होगी

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