उत्तराखण्ड

धर्म आस्था–: बड़ी खबर–:15 जून को मनाया जाने वाला सुप्रसिद्ध कैंची धाम मेला इस बार हुआ स्थगित

कोरोनावायरस का साया: अबकी बार नहीं उमड़ेगा आस्था के दरबार में श्रद्धा का सैलाब
15 जून को मनाया जाने वाला सुप्रसिद्ध कैंची धाम मेला इस बार हुआ स्थगित

भवाली (नैनीताल)

अजय उप्रेती
वैश्विक महामारी कोरोनावायरस के संक्रमण का साया जबरदस्त रूप ले रहा है इसने जहां आम जनजीवन पर बुरा असर डाला है तो वहीं देश की अर्थव्यवस्था पर भी इसका विपरीत प्रभाव देखने को पड़ा है

इसके अलावा कोरोना वायरस के संभावित खतरे ने देश के प्रमुख धार्मिक केंद्रों एवं आस्था के धाम पर भी जबरदस्त हमला किया है अनलॉक एक के जरिए जनजीवन को पटरी पर लाने का प्रयास किया जा रहा है बावजूद इसके सुरक्षा की दृष्टि से सुप्रसिद्ध धार्मिक स्थलों के कपाट पूरी तरह नहीं खोले गए हैं या यूं कहें कि यहां भक्तों की आवाजाही अभी पूरी तरह सुनिश्चित नहीं हो पाई है इसी के चलते उत्तराखंड का सुविख्यात कैंची धाम मेला जो प्रत्येक वर्ष 15 जून को मनाया जाता था इस बार स्थगित कर दिया गया है कैची धाम के इतिहास में पिछले 56 वर्षों में यह पहला मौका होगा जब इस मेले के आयोजन को स्थगित किया गया है सिद्ध संत बाबा नीम करोली महाराज की लीला स्थली, तपोस्थली कैंची धाम जनपद नैनीताल में भवाली अल्मोड़ा मार्ग पर कैची नामक स्थान पर स्थित है।

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कैंची धाम देश के ही नहीं वरन विदेश के श्रद्धालुओं की आस्था का पावन केंद्र है यह स्थान सिद्ध संत बाबा नीम करोली महाराज की अलौकिक सिद्धियों का साक्षी माना जाता है पुराने जानकार लोग बाबा की अलौकिक सिद्धियों की आज भी चर्चाएं करते देखे जा सकते हैं जिन्हें बाबा नीम करोली महाराज के साक्षात दर्शन हुए अपने आप को धन्य मानते हैं क्योंकि धरा धाम में अवतरित होने वाले ऐसे महापुरुष कभी-कभार ही जन्म लेते हैं और जिनके जन्म लेने का एकमात्र मकसद संपूर्ण मानव जाति का कल्याण करने के साथ-साथ उनके अंदर सामाजिक समानता लाने के साथ ही ईश्वर के प्रति आस्था का बीजारोपण करना होता है क्योंकि विषम परिस्थितियों में यही वह शक्ति होती है जो इंसान को जीने का संबल प्रदान करती है 15 जून को मनाया जाने वाला कैंची धाम का मेला श्रद्धालुओं की आस्था और उत्साह का संगम माना जाता है प्रसाद के तौर पर मिलने वाला मालपुए श्रद्धालुओं के समस्त प्रकार के संकटों को दूर करते हैं पुराने जानकार लोग बताते हैं कि बाबा नीम करोली

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महाराज का कुमाऊं में आगमन 1935 से 40 के मध्य हुआ 1962 में उन्होंने अपने एक परम शिष्य पूर्णा नंद तिवारी से इस स्थल पर एक भव्य मंदिर बनाए जाने की बात रखी उक्त स्थल पर सोमवारी महाराज जी की धुनी हुआ करती थी धुनी के आस पास की झाड़ियों के साफ-सफाई कर इस स्थल पर मंदिर बनाने का विचार हुआ लेकिन उक्त जमीन वन विभाग की थी लिहाजा वन विभाग ने उस पर आपत्ति जताई पूर्व आयकर आयुक्त डॉ सतीश अग्रवाल जो बाबा नीम करोली महाराज जी के परम भक्त रहे हैं वह बताते हैं कि उस दौरान आरसी सोनी चीफ कंजरवेटर फॉरेस्ट थे उन्होंने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मंत्री चौधरी चरण सिंह से वार्ता कर उक्त जमीन को मंदिर के लिए आवंटित करवा दिया बताते हैं कि उक्त आदेश की प्रति लेकर खुद तत्कालीन वन मंत्री चौधरी चरण सिंह वहां आए थे और बाबा के आशीर्वाद का ही प्रतिफल माना जाता है कि वर्ष 1979 में 6 महीने के लिए चौधरी चरण सिंह को भारत के प्रधानमंत्री होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ बाबा के चमत्कारों की बहुत बड़ी श्रृंखला है वर्णन किया जाए तो किसी बड़े ग्रंथ की रचना हो सकती है 1962 से शुरू हुआ काम 1964 में पूरा हो गया 15 जून 1964 को उक्त मंदिर की स्थापना के साथ-साथ यहां हनुमान मूर्ति, शिव मूर्ति और लक्ष्मी नारायण की मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा हुई और 15 जून 1964 से उक्त तिथि को स्थापना दिवस के रूप में मनाया जाने लगा इस स्थापना दिवस पर यहां मेले का आयोजन किया गया धीरे-धीरे मेले में आने वाले भक्तों की संख्या बढ़ती चली गई और सैकड़ों को पार कर 1000 और 1000 के बाद यह आंकड़ा लाखों तक पहुंच गया लेकिन इस बार कोरोनावायरस के संक्रमण के खतरों को देखते हुए यह सुप्रसिद्ध मेला स्थगित कर दिया गया है श्रद्धालुओं का मानना है कि वह 15 जून को घर पर रहकर ही स्थापना दिवस मनाएंगे बाबा नीम करौली की पूजा-अर्चना करेंगे तो निश्चित रूप से बाबा अपनी कृपा बरसाने भक्तों के घर पर आएंगे क्योंकि वह सर्वव्यापी हैं और उनकी सूक्ष्म शक्तियां आज भी उनके भक्तों का कल्याण करती हैं उन्हें संरक्षण प्रदान करती हैं

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