चमोली

गांधी जयंती के अवसर पर जिलाधिकारी स्वाति एस भदौरिया ने पीजी काॅलेज गोपेश्वर की छात्राओं के साथ क्लेक्ट्रेट परिसर में नवनिर्मित ‘‘पहाड़ी संग्रहालय’’ का उद्घाटन किया। इस संग्रहालय में आने वालों को सदियों पुरानी परम्परागत पहाड़ी आभूषणों, पुरानी प्रचलित मुद्राओं और वर्तनों आदि की झलक देखने को मिलेगी। प्रचीन धरोहर को संजोने के लिए जिलाधिकारी के अथक प्रयासों से क्लेक्ट्रेट परिसर में पहाड़ी संग्रहालय बनाया गया है। संग्रहालय का उद्घाटन करते हुए जिलाधिकारी ने कहा कि सीमांत जनपद चमोली पुरातनकाल में भारत-तिब्बत व्यापार का प्रमुख केन्द्र रहा है। यहाॅ की संस्कृति, आभूषण, वस्त्र, वर्तन इत्यादि हिमालयी एवं तिब्बती जीवनशैली का प्रभाव परिलक्षित होता है। इस संग्रहालय में रखी वस्तुएं इसी हिमालयी शैली का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि आम जनता को पुरातनकालीन जीवनशैली से परिचित कराने के उदेश्य से इस संग्रहालय को तैयार किया गया है।

पहाडी संग्रहालय में मुर्खली, चन्द्ररौली, पौंछी, सूर्य कवच, धागुला, हाॅसुला, राजस्थानी धागुला, झंवरी, स्यूंण-सांगल आदि आभूषणों संजोकर रखा है। यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित चमोली जिले के रम्माण उत्सव (सलूड डुंग्रा, जोशीमठ) के मिथकीय चरित्रों और घटनाओं को प्रदर्शित करने वाले मुखौटे संग्रहालय में संजोकर रखे गए है, जो प्रसिद्व रम्माण उत्सव में मुखौटा नृत्य शैली की झलक दर्शाता है। पहाड़ी संग्रहालय में प्रचीन भारतीय मुद्राओं एवं सिक्कों को भी संजोकर रखा गया है। जिसमें फूटी कौडी से कौडी, कौडी से दमडी, दमडी से धेला, धेला से पाई, पाई से पैसा, पैसा से आना और आना से रूपया बनने तक भारतीय मुद्रा की झलक प्रदर्शित करने का प्रयास किया गया है। पुरातनकालीन के अतिरिक्त ब्रिटिश भारत काल और स्वतंत्र भारत के समयकालीन सिक्के भी इसमें शामिल है। जो पुरातनकाल में मूल्य मापक और वस्तु विनिमय का साधन रहे है। ये सभी मुद्राएं जिला कार्यालय के मालखाने से संग्रहालय में रखी गई है। पहाडी संग्रहालय में प्रचीनकाल में प्रचलित वर्तनों की प्रदर्शनी भी लगाई गई है। यहाॅ पर काष्ट से बने परिया और कांसे से बने ग्लास, लोटा, थाली, कटोरा, खपर आदि कई प्रकार के वर्तनों रखे गए है। परंपरागत गढ़वाली काष्ठकला शैली में 8वीं शदी में निर्मित केदारशैली का मंदिर, देव पूजन में काम आने वाला एवं सोने-चांदी की पहचान करने वाला शालिग्राम पत्थर, देवपूजन के समय बजाए जाने वाले गढवाली वाद्य यंत्र भांकुरा की झलक भी संग्रहालय में देखी जा सकती है। संग्रहालय के बाहर पहाडी जीवनशैली की सुन्दरता को दर्शाता म्यूरल भी प्रमुख आकर्षण का केन्द्र बना हुआ है। आज से यह संग्रहालय आम जनता के लिए खोल दिया गया है।





