उत्तराखण्ड

खेती क्रांति–: यूकेलिप्टस एवं पौपलर के विकल्प के रूप में तैयार हो रहा है महोगनी वृक्ष, किसानों की आय में भी वृद्धि करेगी इसकी खेती, यहां तैयार हो रही है इसकी पौध।

हल्द्वानी

उत्तराखंड में साल,शीशम,सागौन के बाद अब विदेशी प्रजाति के महोगनी वृक्ष को लेकर किसानों में जागरूकता बढ़ रही है तराई एवं उत्तर प्रदेश के क्षेत्र में महोगनी की पौध लगाने के लिए लोग अब निजी क्षेत्र की नर्सरी में संपर्क कर रहे है एवं जरूरत के हिसाब से पौध ले जा रहे हैं यह वृक्ष पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ किसानों की आमदनी भी बढ़ाएगा वही अनेक बीमारियों के लिए रामबाण इस वृक्ष से लाइलाज बीमारी भी दूर होगी, साल ,शीशम, सागौन, एवं यूकेलिप्टस और पौपलर के बाद किसानों की इस रूचि से निजी नर्सरी संचालक भी इस की पौध तैयार करने में रुचि रखने लगे हैं।
महोगनी पौध को तैयार करने वाले कृष्णा नर्सरी के खीमानंद दुम्का कहते हैं उत्तराखंड में महोगनी की पौध तैयार करने के लिए कई सालों से इस पर कार्य कर रहे थे संग्रहालय से जानकारी एकत्र करने के बाद तथा देश की अनेक निजी नर्सरी में दौरा करने के साथ उन्होंने इस पौधे को तैयार करने के लिए बीड़ा उठाया तथा गुजरात से बीज लाकर यहां पर 5 हजार पौधों को तैयार किया है।
श्री दुम्का कहते हैं महोगनी जीनस स्वेतेनिया की उष्णकटिबंधीय दृढ़ लकड़ी प्रजातियों की एक सीधे-दानेदार, लाल-भूरे रंग का अमेरिका का स्थानीय वृक्ष है, और उष्णकटिबंधीय चिनबेरी परिवार, मेलियासी का हिस्सा है।

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श्री दुम्का के अनुसार महोगनी व्यापारिक रूप से एक बहुत ही कीमती वृक्ष है. महोगनी के पेड़ के लगभग सभी भागों का इस्तेमाल किया जाता है. इसकी लकड़ी का इस्तेमाल जहाज़, फर्नीचर, प्लाईवुड, सजावट की चीजें और मूर्तियों को बनाने में किया जाता हैं. जबकि इसके बीज और फूलों का इस्तेमाल शक्तिवर्धक दवाइयों को बनाने में किया जाता है. 12 साल में तैयार होने वाले इस वृक्ष को अब किसान व्यवसायिक रूप से खेती करने के रूप में भी देख रहे है तथा देश के महाराष्ट्र, गुजरात ,मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगढ़ में भी इसकी खेती की जा रही है तथा तराई और उत्तर प्रदेश में पॉपुलर और यूकेलिफ्टस के विकल्प के रूप में भी किसान इस वृक्ष को देख रहा है श्री दुम्का कहते हैं महोगनी के वृक्ष की पत्तियों में एक ख़ास गुण पाया जाता है. जिसके कारण इसके पेड़ के पास किसी भी तरह के मच्छर या कीट नही आते. इस कारण इसकी पत्तियों और बीज के तेल का इस्तेमाल मच्छर मारने वाली दवाइयों और कीटनाशकों को बनाने में किया जाता है. इसके अलावा इसके तेल का इस्तेमाल साबुन, पेंट, वार्निस और भी कई प्रकार की दवाइयों को बनाने में किया जाता है.

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श्री दुम्का के अनुसार इसका वृक्ष उन जगहों पर उगाया जाता है जहाँ सामान्य हवाएं चलती हैं इसके पेड़ 40 से 200 फिट की लम्बाई के होते हैं. लेकिन भारत में 60 फिट के आसपास की लम्बाई के पाए जाते हैं. इसके वृक्ष की जड़ें ज्यादा गहराई में नही जाती. भारत में इसके पेड़ पहाड़ी क्षेत्रों को छोड़कर किसी भी किसी भी जगह उगा सकते हैं।
बता दें कि महोगनी वृक्ष एक तरह का पर्णपाती वृक्ष है. यह बाहर के बोलिज ( दक्षिण अमेरिका) और डोमिनिकन गणराज्य का राष्ट्रीय वृक्ष है. महोगनी वृक्ष की लकड़ी को चौकड़ा, फर्नीचर, और लकड़ी के अन्य नाव निर्माण के लिए काफी बेशकीमती होता है. इसके पत्तों का उपयोग मुख्य रूप से कैंसर, ब्लडप्रेशर, अस्थमा, सर्दी और मधुमेह सहित कई प्रकार के रोगों में होता है. इसका पौधा पांच वर्षों में एक बार बीज देता है. इसके एक पौधे से पांच किलों तक बीज प्राप्त किए जा सकते है. इसके बीज की कीमत काफी ज्यादा होती है और यह एक हजार रूपए प्रतिकिलो तक बिकते है. अगर थोक की बात करें तो लकड़ी थोक में दो से 2200 रूपए प्रति घन फीट में आसानी से मिल जाती है।
कुल मिलाकर उत्तराखंड के हल्दुचौड देवरामपुर समीप स्थित कृष्णा नर्सरी (मोबाइल नंबर 9897887712 )में फिलहाल 5000 महोगनी की पौध तैयार है तथा अनेक किसान ट्राई के तौर पर इस पौधों को अपने खेतों में लगाने के लिए ले गए हैं जिस तरह से उन पौधों को लगाने के लिए राज्य के किसान उत्सुक है उससे यही लगता है कि आने वाले समय में राज्य में महोगनी की खेती से राज्य के किसान का रकबा बढ़ेगा तथा किसान यूकेलिप्टस एवं पॉपलर के विकल्प के तौर पर इस पौध को लगाकर आर्थिक रूप से खुशहाल होंगे ।

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