
हल्द्वानी
मिट्टी की कला आज नही आदि काल से भारतीय संस्कृति को जोडें हुए है। इस प्राचीनतम कलाओं से आज भी युवाओं के लिए रोजगार का प्रमुख साधन बना हुआं है लेकिन इस कला को जीवंत रखने वाले ही कुछ लोग है जो घरों में सजावट के साथ सरकारी उद्यान मे मूर्तियां एवं वन्यजीवों की आकृतियों को लगाकर उनकी शोभा बढाबा दे रहे है। जिससे अब जहां मूर्तियों के प्रति लोगो का मोह बढ़ रहा है, वही कलाकृति कारों को विभिन्न तरह की मूर्तियों की मांग के अनुरूप काम भी मिल रहा है । अब इस कला को देखते हुए वन विभाग ने भी अपने पार्को मे वन्यजीवों के आर्डर देने प्रारम्भ कर दियें है।
हल्दूचैंड स्थित एक छोटे कस्बे मे मिट्टी की मूर्तियों मे जान फुंक कर इस कला को बचाने वाले हरनाम कहते है यह कला विलुप्त हो रही है हस्त कला के कारीगर अब ढूढनें से भी नही मिल रहे है। इस कला मे चीन के बढते दवदबे एवं हस्तकला से बिमुख हो रहे समाज के चलते आज मिट्टी एवं सीमेन्ट से बन रही कलाकृतिया आज हासिंऐ पर चली गई है।अधिक मेहनत एवं लागत के साथ इस कला के प्रेमियांे की कमी के कारण कलात्मक रूप से सजीव मूर्ति एवं अन्य प्रतिमाओं को जीवंत रखने वाले कलाकार कम होते जा रहे है।
इस प्रतिस्र्पधा की दौड मे वे पिछले 19 सालों से भारतीय संस्कृति एवं मिट्टी की कला को बचाकर किसी तरह से अपने परिवार की अजीविका को चला रहे है। तथा समय के बदलाव के बाद मिट्टी की जगह रेता बजरी एवं सीमेन्ट से इस कला को बचा कर चलते हुए इस हुनर को अपने पुत्र को देकर उसको भी पारंगत कर रहे है।
हरनाम के हाथों से तरासें गये वन्यजीव मे शेर,भालू,बगुला, बतख, हिरन,हाथी हो या उत्तरखण्ड़ का राजकीय पक्षी मोनाल हो या फिर विलुप्त हो चुका डायनासोर मिट्टी की बनी इन मूरत मे हरनाम ने इस तरह से जान डाली कि आज इनका अवलोकन करने वाले लोग अपने दंातों तले अंगुली दवा लेते है हरनाम कहते है कि इस कला को सही बाजार मिले तो यह रोजगार का बडा साधन बन सकता है ।
